मैं
तो था
नादान
अनजान
पर तुम तो
सब जानते थे
खतरे डगर के
न
किया
सचेत
न बताया
और डुबाई
मेरी किश्ती भी
क्यों बैर निभाई
मैं
डूबा
गम में
अफ़सोस
पर तुझको
शर्म नही आयी
कैसा दोस्त है तू
हाँ
अब
बताओ
क्या यह
कविता तुम्हें
पसंद भी आई
तो हाँ कहो न भाई
(समाप्त)
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