एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार भारत में बुजुर्गों
की उपस्थिति लगभग 30%से35% है और इनमे से बहुत थोड़े ऐसे भाग्यशाली है जो आर्थिक रूप से आश्रित नहीं हैं उनसे भी कम वे हैं जिन्हें परिवार का पोषण और संरक्षण प्राप्त है यानि कि वे अपने बच्चो के संरक्षण में हैं और उनमे भी वो जिन्हें प्यार सम्मान भी उन्हें प्राप्त है नगण्य हैं हमें उनके लिये संतोष है पर जिन्हें ये सुख नहीं प्राप्त है वो अपमान और नारकीय जीवन जी रहे है सरकारी प्रयास यथा वृद्धावस्था पेंशन...सभी को उपलब्ध नहीं जो है भी वोह इस महंगाई में ऊँट के मुँह में जीरे के समान ही है हमारे यहाँ वृद्धाश्रम का चलन भी नहीं है जहाँ विदेशों के समान लोग अपनी इस अवस्था को थोडा आराम और सुख से जी सकें यह समस्या विकट हो जाती हैं जहाँ आज केनुक्लियर परिवार हैं पति पत्नी दोनों काम पर जाते है बच्चो की पढाई होमवर्क उनके पास कहाँ समय बचता है कि बुज़ुर्ग माँ बाप को देख सकें ऐसे में अगर वो शारीरिक या मानसिक तौर पर आश्रित हैं तो कोढ़ में खाज के सामान दुखदाई हो जाता है अब करें तो क्या करें न बच्चो को छोड़ सकते हैं न माँ बाप को ही आज इस लेख का चिंतन यहाँ से प्रारंभ होता हैहमने देखा कि बहुत सारे वे भी जो बहुत ही थोड़ी संख्या में है जिन्हें अपने बच्चो की देखभाल प्राप्त है पूर्णतया संतुष्ट नहीं है और अगर पति पत्नी में एक गुज़र जाये तो दूसरा पूरी तरह उपेक्षित हो जाता है मैंने कई वैवाहिक साइट्स पर देखा बड़ी संख्या में बुजुर्ग भी जीवन साथी ढूंढ रहे हैं जो सर्वथा उचित भी है आखिर उन्हें भी तो जीने के लिये साथी कीजरूरत है अभिनेता आमिर खान जी के एक शो "सत्यमेव जयते " में इस समस्या को बड़े प्रभावशाली ढंग से उठाया गया था जब संयुक्त परिवारों का चलन था बुज़ुर्ग और ऐसे लोग जिनका जीवन साथी बिछड़ जात था जी लेते थे कही कही विधवा विधुर के परस्पर विवाह करने का रिवाज था पर बहुत सीमित मात्रा में अब वो सब उपलब्ध नहीं अतः हमें आपको और पूरे समाज को इस विषय में सोंचना ही होगा कि समाज का यह महत्वपूर्ण हिस्सा जिसने हमारे आज के लिये अपना कल दिया है औरजिनके कारण और प्रयासों से हम इस धरती पर हैं और सम्मान से जी रहे है जिनका आज हमारा कल होगा और जो वे आज भुगत रहे हैं हम कल भुगतेंगे यदि हमने आज न सोंचा और कोई कारगर उपाय नहीं किये आखिर हम अगली पीढ़ी को क्या शिक्षा और सन्देश दे रहे कि बुज़ुर्ग एक बोझ हैं और उन्हें उनके हाल पर मरने के लिये छोड़ दो कम से कम आजतक तो ऐसा नहीं था हमें बचपन से बुजुर्गों के पैर छूने को कहा जाता था और माँ बाप के पैरो के तले स्वर्ग है ऐसा सिखाया और बताया जाता थाअतः हमने तो अपने बुजुर्गों को अपनी पीढ़ी तक सब दिया जिसके वे पात्र थे पर अब यह भावना नदारत होती जा रही है अब क्या किया जाय तो मेरी समझ में बुजुर्गो के लिये विदेशों सरीखे सर्वसुविधा युक्तओल्ड होम बड़े स्तर में खोलने ही होंगे जो सरकारी गैर सरकारी या व्यक्तिगत या संस्थागत तौर से काम करे बुजुर्गो के लिये विशेष मैरिज ब्यूरो जहाँ उन्हें साथी ढूँढने में सहायता मिले अपनी उम्र के लोगों का साथ मिले और बुढ़ापा थोडा आराम से कटे उधर उनके बच्चों के परिवार भी इनसे निश्चिंत होकर अपनी जिन्दगी चैन से जी सकेंगे इन बुजुर्गों के लिये विशेष चिकत्सा व्यवस्था करनी होगी जहाँ इनको तुरंत इलाज मिल सके उनकी देखभाल हो सके क्या यह वर्तमान पीढ़ी का यह दायित्व नहीं है कि वोह बुजुर्गों के हित में भी सोंचे जो कल हमारा भविष्य है और अगर हमने कुछ नहीं सोंचा या किया तो आने वाले पीढ़ी को गलत सन्देश जायेंगे और हम भी वोही सब भुगतेंगे जो आज हमारे बुज़ुर्ग भुगत रहे है अतः तुरंत और प्रभावी सोंच और कदम आज कीआवश्यकताहै |
Thursday 30 July 2015
सोंच विचार : बुजुर्गों की समस्याएँ उन पर विचार व् उनके निदान
Thursday 23 July 2015
कविता : सफ़ेद साँप ...
बेटी के साथ
नदी किनारे
घूमते घूमते
मुझे और
मेरी बेटी को
एक सुन्दर
मखमली टोकरी दिखी
उत्सुकतावश जब
बेटी ने
उसे उठा लिया
और मेरे
मना करने से पहिले
उसे खोल भी लिया
देखा तो
एक सुन्दर साँप
छोटा सा
पतला सा
निरीह सा
गोल गोल सा
उसमे पड़ा था
मैंने बेटी को
मना किया
कि बेटा
साँप की जाति
बड़ी जहरीली और
खतरनाक होती है
उसे अपने
पास रखने से
नुकसान ही होता है
पर बेटी तो उस
साँप की सुन्दरता
और निरीहता पर
मुग्ध थी
कुछ भी सुनने
और समझने को
तैयार नहीं थी
उस साँप को
घर ले चलने
की जिद्द कर बैठी
समझाना बुझाना
बे असर हो गया
वो सारे पैतरे
आजमाने लगी
अनुनय विनय से
चीखने चिल्लाने
और रोने तक
बेटी का प्यार
मेरी बुद्धि पर
भारी पड़ा
उस साँप को
हम घर ले आये
एक सुन्दर
पिंजरे में
उसे रक्खा
घरवालों मिलने वालों
दोस्तों पड़ोसियों
सबने समझाया पर
बेटी कुछ भी सुनने
सोंचने समझने को
तैयार नहीं
उसके आगे
सबको झुकना ही पड़ा
बेटी उस साँप को
अपने पास रखती
उसकी देखभाल करती
उसे दूध पिलाती
धीरे धीरे
बेटी भी
बड़ी होने लगी
और सफ़ेद साँप भी
अब साँप
बड़ा हो गया था
और सुन्दर भी
हाँ वो अब
फुफकारने और
फन पटकने लगा था
कभी कभी
गुस्से में वो
बड़ा खतरनाक
दिखने लगा था
अब हम सब भी
सशंकित हो गए
फिर से
सबने बेटी को
समझाया कि
बेटी सुन्दर और
सफ़ेद होने के
बावजूद यह एक
खतरनाक और जहरीला
साँप ही तो है
इससे दूर ही
रहा जाये तो अच्छा
यह कभी भी
किसी को भी
नुकसान पहुंचा सकता है
इसे बाहर छोड़
आने में ही भलाई है
पर बेटी
उसके मोंह में
बुरी तरह उलझी थी
कुच्छ भी
सुनने समझने को
तय्यार नहीं थी
एक दिन
सबकी सलाह पर
चुप चाप जब बेटी
घर से बाहर
कहीं गयी थी
उस साँप को सुदूर
जंगल में छोड़ आया
वापस आने पर
उस साँप को न पा
उसने रो रोकर
चिल्ला चिल्ला कर
अपने को और
सारे घर को
हलकान कर लिया
मुझे वो साँप चाहिए
मुझे उससे
प्यार हो गया है
वोह मुझे
कुछ भी
नुकसान नहीं करेगा
बहुत समझाने पर भी
वोह न मानी
और उस साँप को
ढूँढने निकल गयी
दो दिन बाद
जब वोह लौटी तो
उसके चेहरे पर ख़ुशी
और होंठों पर
मुस्कान थी
वोह साँप
बड़े खतरनाक
तरीके से
उसके गले में
लिपटा था
अब हम सभी के
होश उड़ गए
लड़की साँप
छोड़ने को तैयार नहीं
और साँप लड़की को
छोड़ने को तैयार नहीं
समझाना बुझाना
सुब बेकार हो रहा था
साँप फिर से
हमारे घर में
आ गया था
एक दिन वही हुवा
जिसका हमें डर था
साँप ने लड़की को
डंस लिया
बेटी बेहोश थी
सारा शरीर नीला था
मुँह से फेन बह रहा था
हम उसे लेकर
अस्पताल भागे
डाक्टरों की मेहनत
और हमारे भाग्य ने
साथ दिया
लड़की की जान बच गयी
उसका शरीर पीला था
वोह बहुत उदास थी
खैर समय के साथ
हम उस हादसे को
भूल गए
लड़की की सेहत और
सूरत निखर आयी
वोह फिर से बतियाने और
मुस्कराने लगी
समय देख एक सुन्दर से
राजकुमार से लड़के से
उसकी शादी करा दी
अब वोह अपने परिवार में
और हम अपने संसार में
खुश और प्रसन्न हैं
उस हादसे को
भूल चुके हैं
इस घटना की कहानी
इसलिए दुहरा रहें हैं
कि फिर कोई पिता
बेटी की गलत और
गैर वाजिब माँग को
न झुके न माने बल्कि
सख्ती से मना करे
ताकि ऐसे हादसों
की पुनरावृत्ति
फिर कभी न हो
फिर कभी न हो
फिर कभी न हो
(समाप्त)
नदी किनारे
घूमते घूमते
मुझे और
मेरी बेटी को
एक सुन्दर
मखमली टोकरी दिखी
उत्सुकतावश जब
बेटी ने
उसे उठा लिया
और मेरे
मना करने से पहिले
उसे खोल भी लिया
देखा तो
एक सुन्दर साँप
छोटा सा
पतला सा
निरीह सा
गोल गोल सा
उसमे पड़ा था
मैंने बेटी को
मना किया
कि बेटा
साँप की जाति
बड़ी जहरीली और
खतरनाक होती है
उसे अपने
पास रखने से
नुकसान ही होता है
पर बेटी तो उस
साँप की सुन्दरता
और निरीहता पर
मुग्ध थी
कुछ भी सुनने
और समझने को
तैयार नहीं थी
उस साँप को
घर ले चलने
की जिद्द कर बैठी
समझाना बुझाना
बे असर हो गया
वो सारे पैतरे
आजमाने लगी
अनुनय विनय से
चीखने चिल्लाने
और रोने तक
बेटी का प्यार
मेरी बुद्धि पर
भारी पड़ा
उस साँप को
हम घर ले आये
एक सुन्दर
पिंजरे में
उसे रक्खा
घरवालों मिलने वालों
दोस्तों पड़ोसियों
सबने समझाया पर
बेटी कुछ भी सुनने
सोंचने समझने को
तैयार नहीं
उसके आगे
सबको झुकना ही पड़ा
बेटी उस साँप को
अपने पास रखती
उसकी देखभाल करती
उसे दूध पिलाती
धीरे धीरे
बेटी भी
बड़ी होने लगी
और सफ़ेद साँप भी
अब साँप
बड़ा हो गया था
और सुन्दर भी
हाँ वो अब
फुफकारने और
फन पटकने लगा था
कभी कभी
गुस्से में वो
बड़ा खतरनाक
दिखने लगा था
अब हम सब भी
सशंकित हो गए
फिर से
सबने बेटी को
समझाया कि
बेटी सुन्दर और
सफ़ेद होने के
बावजूद यह एक
खतरनाक और जहरीला
साँप ही तो है
इससे दूर ही
रहा जाये तो अच्छा
यह कभी भी
किसी को भी
नुकसान पहुंचा सकता है
इसे बाहर छोड़
आने में ही भलाई है
पर बेटी
उसके मोंह में
बुरी तरह उलझी थी
कुच्छ भी
सुनने समझने को
तय्यार नहीं थी
एक दिन
सबकी सलाह पर
चुप चाप जब बेटी
घर से बाहर
कहीं गयी थी
उस साँप को सुदूर
जंगल में छोड़ आया
वापस आने पर
उस साँप को न पा
उसने रो रोकर
चिल्ला चिल्ला कर
अपने को और
सारे घर को
हलकान कर लिया
मुझे वो साँप चाहिए
मुझे उससे
प्यार हो गया है
वोह मुझे
कुछ भी
नुकसान नहीं करेगा
बहुत समझाने पर भी
वोह न मानी
और उस साँप को
ढूँढने निकल गयी
दो दिन बाद
जब वोह लौटी तो
उसके चेहरे पर ख़ुशी
और होंठों पर
मुस्कान थी
वोह साँप
बड़े खतरनाक
तरीके से
उसके गले में
लिपटा था
अब हम सभी के
होश उड़ गए
लड़की साँप
छोड़ने को तैयार नहीं
और साँप लड़की को
छोड़ने को तैयार नहीं
समझाना बुझाना
सुब बेकार हो रहा था
साँप फिर से
हमारे घर में
आ गया था
एक दिन वही हुवा
जिसका हमें डर था
साँप ने लड़की को
डंस लिया
बेटी बेहोश थी
सारा शरीर नीला था
मुँह से फेन बह रहा था
हम उसे लेकर
अस्पताल भागे
डाक्टरों की मेहनत
और हमारे भाग्य ने
साथ दिया
लड़की की जान बच गयी
उसका शरीर पीला था
वोह बहुत उदास थी
खैर समय के साथ
हम उस हादसे को
भूल गए
लड़की की सेहत और
सूरत निखर आयी
वोह फिर से बतियाने और
मुस्कराने लगी
समय देख एक सुन्दर से
राजकुमार से लड़के से
उसकी शादी करा दी
अब वोह अपने परिवार में
और हम अपने संसार में
खुश और प्रसन्न हैं
उस हादसे को
भूल चुके हैं
इस घटना की कहानी
इसलिए दुहरा रहें हैं
कि फिर कोई पिता
बेटी की गलत और
गैर वाजिब माँग को
न झुके न माने बल्कि
सख्ती से मना करे
ताकि ऐसे हादसों
की पुनरावृत्ति
फिर कभी न हो
फिर कभी न हो
फिर कभी न हो
(समाप्त)
कविता :मृत्यु ......
मृत्यु तो आती है … अवश्यम्भावी है
वो अज़र…. अमर… और सत्य है
वो महा शक्तिशाली . .शान्तिदायिनी है
पल में पीड़ा हरनेवाली असीम शान्ति है
जो आया है संसार में …..
राजा हो … रंक हो… या फ़कीर
सबके लिए मृत्यु का एक दिन तय है
समय तय है …..घड़ी तय है
कोई मृत्यु से लड़ नहीं सकता
कोई उससे जीत नहीं सकता
कोई चाहे भी चंद घड़ी
ज्यादा जी नहीं सकता
कोई चाहे भी तो मृत्यु के गाल से
किसी को छीन नहीं सकता
फिर जब हम जानते है ……कि
मृत्यु अवश्यम्भावी है … अटल है…
तो क्यों हर कोई
डरता है आसन्न मृत्यु से
लोग क्यों जीना चाहतें हैं हमेशा….
हमारे धर्म में मृत्यु का मतलब
आत्मा के द्वारा चोला बदलने का है
आत्मा कभी न जन्म लेती है
और न ही कभी मरती है
वो तय कार्यक्रम के अनुसार
जो तकदीर बनाती है
अपने चोले बदला करती है
अतः आइये हम
अपनी मौत से साक्षात्कार करें
उससे डरें नहीं… उसे प्यार करें
जब भी अवसर आये हँसते हँसते मरें
जब उसे आना ही है तो आये
अपना काम करे और चली जाये
फिर डरना और बिलखना कैसा
किसी के मरने पर रोना तो बेकार है
मरने के बाद पार्थिव शरीर भी बेकार है
उसे जलाओ .. धरती में दबावो या
पानी में बहावो…कुछ फर्क नहीं पड़ता
मृत्यु अतः स्वागत की चीज़ है
मृत्यु अतः स्वागत की ही चीज़ है
(समाप्त)
वो अज़र…. अमर… और सत्य है
वो महा शक्तिशाली . .शान्तिदायिनी है
पल में पीड़ा हरनेवाली असीम शान्ति है
जो आया है संसार में …..
राजा हो … रंक हो… या फ़कीर
सबके लिए मृत्यु का एक दिन तय है
समय तय है …..घड़ी तय है
कोई मृत्यु से लड़ नहीं सकता
कोई उससे जीत नहीं सकता
कोई चाहे भी चंद घड़ी
ज्यादा जी नहीं सकता
कोई चाहे भी तो मृत्यु के गाल से
किसी को छीन नहीं सकता
फिर जब हम जानते है ……कि
मृत्यु अवश्यम्भावी है … अटल है…
तो क्यों हर कोई
डरता है आसन्न मृत्यु से
लोग क्यों जीना चाहतें हैं हमेशा….
हमारे धर्म में मृत्यु का मतलब
आत्मा के द्वारा चोला बदलने का है
आत्मा कभी न जन्म लेती है
और न ही कभी मरती है
वो तय कार्यक्रम के अनुसार
जो तकदीर बनाती है
अपने चोले बदला करती है
अतः आइये हम
अपनी मौत से साक्षात्कार करें
उससे डरें नहीं… उसे प्यार करें
जब भी अवसर आये हँसते हँसते मरें
जब उसे आना ही है तो आये
अपना काम करे और चली जाये
फिर डरना और बिलखना कैसा
किसी के मरने पर रोना तो बेकार है
मरने के बाद पार्थिव शरीर भी बेकार है
उसे जलाओ .. धरती में दबावो या
पानी में बहावो…कुछ फर्क नहीं पड़ता
मृत्यु अतः स्वागत की चीज़ है
मृत्यु अतः स्वागत की ही चीज़ है
(समाप्त)
कविता : दंगे की भूमिका और शुरुवात ....
एक दिन एक कौवे के बच्चे ने कौवे से कहा
कि हमने लगभग हर चार पैर वाले
जीव का माँस खाया है,
मगर आजतक दो पैर पर चलने वाले
जीव का माँस नहीं खाया है..
,
पापा कैसा होता है इंसानों का माँस?
कौवे ने कहा मैंने जीवन में तीन बार
खाया है, बहुत स्वादिष्ट होता है..
,
कौवे के बच्चे ने कहा मुझे भी खाना है..
कौवे ने थोड़ी देर सोचने के बाद कहा
चलो खिला देता हूँ.. बस मैं जैसा कह रहा हूँ
वैसे ही करना मैंने ये तरीका अपने पुरखों
से सीखा है..
,
कौवे ने अपने बेटे को एक जगह
रुकने को कहा और थोड़ी देर बाद माँस
के दो टुकड़े उठा लाया..
कौवे के बच्चे ने खाया तो
कहा की
ये तो सूअर के माँस जैसा लग रहा है..
कौवे ने कहा अरे ये खाने के
लिए नहीं है..
इस से ढेर सारा माँस बनाया जा सकता है..
जैसे दही जमाने के लिए थोड़ा सा दही
दूध में डाल कर छोड़ दिया जाता है,
वैसे ही इसे छोड़ कर आना है..
बस देखना कल तक कितना स्वादिष्ट
माँस मिलेगा,
वो भी मनुष्य का
,
बच्चे को बात समझ में नहीं आई
मगर वो कौवे का जादू देखने के लिए
उत्सुक था..
,
कौवे ने उन दो माँस के टुकड़ों में से
एक टुकड़ा एक मंदिर में
और दूसरा
पास की एक मस्जिद में टपका दिया..
तब तक शाम हो चली थी,
,
कौवे ने कहा अब कल सुबह तक हम सभी को
ढेर सारा दो पैर वाले जानवरोँ का
माँस मिलने वाला है..
,
सुबह सवेरे कौवे और बच्चे
ने देखा तो
सचमुच गली-गली में मनुष्यों की
कटी और जली लाशें बिखरी पड़ीं थीं..
हर तफ़र सन्नाटा था..
पुलिस सड़कों पर घूम रही थी..
कर्फ्यू लगा हुआ था..
आज कौवे के बच्चे ने कौवे से दो पैर वाले
जानवर का शिकार करना सीख लिया था..
,
कौवे के बच्चे ने पूछा अगर दो पैर वाला मनुष्य
हमारी चालाकी समझ गया तो ये तरीका
बेकार हो जायेगा..
कौवे ने कहा सदियाँ गुज़र गईं मगर
आज तक दो पैर वाला जानवर
हमारे इस जाल में फंसता ही आया है..
सूअर या बैल के माँस का एक टुकड़ा,
हजारों दो पैर वाले जानवरों को
पागल कर देता है,
वो एक दूसरे को मारने लग जाते हैं
और हम आराम से उन्हें खाते हैं..
मुझे नहीं लगता कभी उसे इतनी अक़ल
आने वाली है..
,
कौवे के बेटे ने कहा क्या कभी किसी ने
इन्हें समझाने की कोशिश नहीं की..
,
कौवे ने कहा एक बार एक ने इन्हें
समझाने की कोशिश की थी,
मनुष्यों ने उसे dharam ka dushman
कह के मार दिया…………
यहाँ सवाल ये उठता है की कौआ कौन ?????
,
स्टोरी बोधक है
लाइँ एवं शेयर करके
अधिकाधिक लोगोँ तक पहुँचाएँ
कि हमने लगभग हर चार पैर वाले
जीव का माँस खाया है,
मगर आजतक दो पैर पर चलने वाले
जीव का माँस नहीं खाया है..
,
पापा कैसा होता है इंसानों का माँस?
कौवे ने कहा मैंने जीवन में तीन बार
खाया है, बहुत स्वादिष्ट होता है..
,
कौवे के बच्चे ने कहा मुझे भी खाना है..
कौवे ने थोड़ी देर सोचने के बाद कहा
चलो खिला देता हूँ.. बस मैं जैसा कह रहा हूँ
वैसे ही करना मैंने ये तरीका अपने पुरखों
से सीखा है..
,
कौवे ने अपने बेटे को एक जगह
रुकने को कहा और थोड़ी देर बाद माँस
के दो टुकड़े उठा लाया..
कौवे के बच्चे ने खाया तो
कहा की
ये तो सूअर के माँस जैसा लग रहा है..
कौवे ने कहा अरे ये खाने के
लिए नहीं है..
इस से ढेर सारा माँस बनाया जा सकता है..
जैसे दही जमाने के लिए थोड़ा सा दही
दूध में डाल कर छोड़ दिया जाता है,
वैसे ही इसे छोड़ कर आना है..
बस देखना कल तक कितना स्वादिष्ट
माँस मिलेगा,
वो भी मनुष्य का
,
बच्चे को बात समझ में नहीं आई
मगर वो कौवे का जादू देखने के लिए
उत्सुक था..
,
कौवे ने उन दो माँस के टुकड़ों में से
एक टुकड़ा एक मंदिर में
और दूसरा
पास की एक मस्जिद में टपका दिया..
तब तक शाम हो चली थी,
,
कौवे ने कहा अब कल सुबह तक हम सभी को
ढेर सारा दो पैर वाले जानवरोँ का
माँस मिलने वाला है..
,
सुबह सवेरे कौवे और बच्चे
ने देखा तो
सचमुच गली-गली में मनुष्यों की
कटी और जली लाशें बिखरी पड़ीं थीं..
हर तफ़र सन्नाटा था..
पुलिस सड़कों पर घूम रही थी..
कर्फ्यू लगा हुआ था..
आज कौवे के बच्चे ने कौवे से दो पैर वाले
जानवर का शिकार करना सीख लिया था..
,
कौवे के बच्चे ने पूछा अगर दो पैर वाला मनुष्य
हमारी चालाकी समझ गया तो ये तरीका
बेकार हो जायेगा..
कौवे ने कहा सदियाँ गुज़र गईं मगर
आज तक दो पैर वाला जानवर
हमारे इस जाल में फंसता ही आया है..
सूअर या बैल के माँस का एक टुकड़ा,
हजारों दो पैर वाले जानवरों को
पागल कर देता है,
वो एक दूसरे को मारने लग जाते हैं
और हम आराम से उन्हें खाते हैं..
मुझे नहीं लगता कभी उसे इतनी अक़ल
आने वाली है..
,
कौवे के बेटे ने कहा क्या कभी किसी ने
इन्हें समझाने की कोशिश नहीं की..
,
कौवे ने कहा एक बार एक ने इन्हें
समझाने की कोशिश की थी,
मनुष्यों ने उसे dharam ka dushman
कह के मार दिया…………
यहाँ सवाल ये उठता है की कौआ कौन ?????
,
स्टोरी बोधक है
लाइँ एवं शेयर करके
अधिकाधिक लोगोँ तक पहुँचाएँ
विशेष नोट :ये कविता मुझे फेस बुक से मिली और
Mohammad Shamad जी की लिखी है यह
एक ऐसा सच है जिसे हर भारतीय को जानना ही
चाहिए
Mohammad Shamad जी की लिखी है यह
एक ऐसा सच है जिसे हर भारतीय को जानना ही
चाहिए
कविता : तुम करेला .....
तुम करेला तो खैर
पहिले भी थे
अब नीम पर
चढ़ कर और
कडुवे हो गए हो
जब तक थे
वर्क्स मैनेजर
करते थे बकवास
दिखाते थे रुतबे
अपनी गन्दी
मानसिकता छिछोरापन
स्वार्थ से भरा
तुम्हारा व्यवहार
सारी इंसानियत भूल
हैवानियत का
खेल खेलते थे
और अब जब कि
तुम बन गए
डिप्टी जनरल मैनेजर
तुम्हारा अहं बढ़ गया है
बददिमागी तुम्हारे
ऊपर काबिज़ है
तुम किसी से सीधे
मुँह बात नहीं करते
हर किसी से
उलझ जाते हो
अपनी पदवी ओहदे का
रौब झाड़ते हो
जो असहाय दीन और
अपाहिज हैं उन पर
तुम्हारा रौब
नजला बनकर
बरस रहा है
लोग त्रस्त हो रहे हैं
आहें भर रहे हैं
बददुवा दे रहें है
आँसू पी रहें हैं
पर तुम उनका
शोषण करते नहीं थकते
हाँ एक तबका
ऐसा भी है
जिनसे तुम दबते हो
मनाते हो कि वे
कभी तुम्हारे
सामने न आयें
उनके सामने आते ही
तुम्हारी अदृश्य
दुम तुम्हारे
दोनों पैरो के बीच
दब जाती है
जबान तालू से
चिपक जाती है
गला खुश्क हो जाता है
तुम घिघियाने
मिमयाने लगते हो
क्योकि तुम
उन्हें झेल नहीं सकते
गलती पर जो थे न
तुम्हारा ज़मीर
तुम्हारा साथ नहीं देता
तुम्हारे पाप तुम्हारे
सामने आने लगते हैं
गुनाह आँखों के सामने
नाचने लगतें हैं
और तुम अचानक
रोबीले से ..कातर दुखी
दीनहीन नज़र आते हो
हाँ मैं नेता गणों की
बात ही कर रहा हूँ
गलती पर हो तभी तो
उन्हें फेस नहीं कर पाते
तुम्हारा सारा रौब
झड चुका होता है
और तुम
बीमार बीमार से
नज़र आते हो
यही हालत तुम्हारी
जनरल मैनजर साहब के
आगमन पर होती है
तुम्हारी पूरी
कोशिश होती है कि
तुम उनके दौरे पर
उनके सामने न पड़ो
पर वे तुम्हे
बुला या बुलवा लेते हैं
तुम्हारी जबान
तालू से चिपक जातीहै
दिल जोर जोर से
धडकने लगता है
कपडे पसीने से
गीले हो जाते हैं
आवाज़ मिमयाने
घिघियाने लगती है
तब तुम न कडुवे
दीखते हो न कसैले
तुम दीखते हो
बलिबेदी कि तरफ
घसीटे जाते
बकरे की तरह
जो चलता नहीं
घसीटा जाता है
वधस्थल की ओर
मैं तुम्हारे
दोनों रूपों को
भलीभांति जानता हूँ
तुम्हे खूब समझता हूँ
तुम एक कायर हो
महा डरपोक हो
केवल कमजोरों पर
रौब मारते हो
अतः मुझसे
संभल कर रहना
कहीं ऐसा न हो
कि मैं तुम्हें
बीच बाज़ार
न नंगा कर दूं
तुम्हारी आबरू की
चादर उतार दूँ
तुम करेला तो खैर
पहिले भी थे
अब नीम पर चढ़कर
ज्यादा कडुवे और
कसैले हो गए हो
पर मैं तुम्हारी
असलियत जानता हूँ
औरों से ज्यादा
तुम्हे पहिचानता हूँ समझे करेला जी
(समाप्त)
विशेष नोट :पुरानी डायरी सेपहिले भी थे
अब नीम पर
चढ़ कर और
कडुवे हो गए हो
जब तक थे
वर्क्स मैनेजर
करते थे बकवास
दिखाते थे रुतबे
अपनी गन्दी
मानसिकता छिछोरापन
स्वार्थ से भरा
तुम्हारा व्यवहार
सारी इंसानियत भूल
हैवानियत का
खेल खेलते थे
और अब जब कि
तुम बन गए
डिप्टी जनरल मैनेजर
तुम्हारा अहं बढ़ गया है
बददिमागी तुम्हारे
ऊपर काबिज़ है
तुम किसी से सीधे
मुँह बात नहीं करते
हर किसी से
उलझ जाते हो
अपनी पदवी ओहदे का
रौब झाड़ते हो
जो असहाय दीन और
अपाहिज हैं उन पर
तुम्हारा रौब
नजला बनकर
बरस रहा है
लोग त्रस्त हो रहे हैं
आहें भर रहे हैं
बददुवा दे रहें है
आँसू पी रहें हैं
पर तुम उनका
शोषण करते नहीं थकते
हाँ एक तबका
ऐसा भी है
जिनसे तुम दबते हो
मनाते हो कि वे
कभी तुम्हारे
सामने न आयें
उनके सामने आते ही
तुम्हारी अदृश्य
दुम तुम्हारे
दोनों पैरो के बीच
दब जाती है
जबान तालू से
चिपक जाती है
गला खुश्क हो जाता है
तुम घिघियाने
मिमयाने लगते हो
क्योकि तुम
उन्हें झेल नहीं सकते
गलती पर जो थे न
तुम्हारा ज़मीर
तुम्हारा साथ नहीं देता
तुम्हारे पाप तुम्हारे
सामने आने लगते हैं
गुनाह आँखों के सामने
नाचने लगतें हैं
और तुम अचानक
रोबीले से ..कातर दुखी
दीनहीन नज़र आते हो
हाँ मैं नेता गणों की
बात ही कर रहा हूँ
गलती पर हो तभी तो
उन्हें फेस नहीं कर पाते
तुम्हारा सारा रौब
झड चुका होता है
और तुम
बीमार बीमार से
नज़र आते हो
यही हालत तुम्हारी
जनरल मैनजर साहब के
आगमन पर होती है
तुम्हारी पूरी
कोशिश होती है कि
तुम उनके दौरे पर
उनके सामने न पड़ो
पर वे तुम्हे
बुला या बुलवा लेते हैं
तुम्हारी जबान
तालू से चिपक जातीहै
दिल जोर जोर से
धडकने लगता है
कपडे पसीने से
गीले हो जाते हैं
आवाज़ मिमयाने
घिघियाने लगती है
तब तुम न कडुवे
दीखते हो न कसैले
तुम दीखते हो
बलिबेदी कि तरफ
घसीटे जाते
बकरे की तरह
जो चलता नहीं
घसीटा जाता है
वधस्थल की ओर
मैं तुम्हारे
दोनों रूपों को
भलीभांति जानता हूँ
तुम्हे खूब समझता हूँ
तुम एक कायर हो
महा डरपोक हो
केवल कमजोरों पर
रौब मारते हो
अतः मुझसे
संभल कर रहना
कहीं ऐसा न हो
कि मैं तुम्हें
बीच बाज़ार
न नंगा कर दूं
तुम्हारी आबरू की
चादर उतार दूँ
तुम करेला तो खैर
पहिले भी थे
अब नीम पर चढ़कर
ज्यादा कडुवे और
कसैले हो गए हो
पर मैं तुम्हारी
असलियत जानता हूँ
औरों से ज्यादा
तुम्हे पहिचानता हूँ समझे करेला जी
(समाप्त)
एक पुराना पन्ना
कविता : अभी भी समय है .....
जब तुम कहती हो कि
तुम एक परसेंट भी मुझे
प्यार नहीं नहीं करतीं
मुझे एकदम यकीं
नहीं होता
क्योंकि तुम्हारी
आँखों की चमक
मंद मंद मुस्कान और
शरारती चितवन कुछ
और ही बयाँ करतीं हैं
मैं जानता हूँ कि मुझे
चिढ़ाने और सताने में
तुम्हे विशेष प्रसन्नता
मिलती है जो तुम्हारी
बॉडी लैंग्वेज
छिपा नहीं पाती
पर तुम हो कि
ऐसे खेल खेलने से
बाज़ नहीं आतीं
आखिर मुझे
यूँ सताने से
तुम कौन सी ख़ुशी
बटोर लेती हो
पके बचपन और
जवानी की संधि जिसे
किशोरावस्था भी कहते है
जब सपने कोमल और
प्यारे रहतें हैं
तुमने अचानक मेरे दिल पर
दस्तक दी और
उसे खाली देख
डेरा जमाकर बैठ गयीं
वो मेरा दिल जो
तुम्हारा घर हुआ करता है
आज तुम्हारे इस एलान से
बेतरह घायल है और
बहुत जल्द तुम्हे
एहसास हो जायेगा कि
तुमने क्या गलती की है
ऐसा मज़ाक कर
जब तुम खो दोगी
तुम्हारा ये अनन्य प्रेमी
जो इस झटके को
न झेल पायेगा
और बेचारा
मर ही जायेगा
अतः समझाता हूँ
अभी भी समय है
अपनी गलती सुधार लो
प्यार का प्रतिशत बढ़ा कर
शत प्रतिशत कर लो
अपनी गलती और
मजाक से तौबा कर लो
फिर से गले से लग जाओ
तुम मेरी सिर्फ
मेरी बन जाओ
मैं तुम्हे न सिर्फ
माफ़ कर दूंगा
सीने से लगाकर
चूम भी लूँगा
(समाप्त)तुम एक परसेंट भी मुझे
प्यार नहीं नहीं करतीं
मुझे एकदम यकीं
नहीं होता
क्योंकि तुम्हारी
आँखों की चमक
मंद मंद मुस्कान और
शरारती चितवन कुछ
और ही बयाँ करतीं हैं
मैं जानता हूँ कि मुझे
चिढ़ाने और सताने में
तुम्हे विशेष प्रसन्नता
मिलती है जो तुम्हारी
बॉडी लैंग्वेज
छिपा नहीं पाती
पर तुम हो कि
ऐसे खेल खेलने से
बाज़ नहीं आतीं
आखिर मुझे
यूँ सताने से
तुम कौन सी ख़ुशी
बटोर लेती हो
पके बचपन और
जवानी की संधि जिसे
किशोरावस्था भी कहते है
जब सपने कोमल और
प्यारे रहतें हैं
तुमने अचानक मेरे दिल पर
दस्तक दी और
उसे खाली देख
डेरा जमाकर बैठ गयीं
वो मेरा दिल जो
तुम्हारा घर हुआ करता है
आज तुम्हारे इस एलान से
बेतरह घायल है और
बहुत जल्द तुम्हे
एहसास हो जायेगा कि
तुमने क्या गलती की है
ऐसा मज़ाक कर
जब तुम खो दोगी
तुम्हारा ये अनन्य प्रेमी
जो इस झटके को
न झेल पायेगा
और बेचारा
मर ही जायेगा
अतः समझाता हूँ
अभी भी समय है
अपनी गलती सुधार लो
प्यार का प्रतिशत बढ़ा कर
शत प्रतिशत कर लो
अपनी गलती और
मजाक से तौबा कर लो
फिर से गले से लग जाओ
तुम मेरी सिर्फ
मेरी बन जाओ
मैं तुम्हे न सिर्फ
माफ़ कर दूंगा
सीने से लगाकर
चूम भी लूँगा
कविता : इंतज़ार में
वोह आँखें
वोह बिछुड़ना
आँखों से
ओझिल होती सूरत
शनै शनै
याद आती है
वोह बिछुड़ने की घड़ियाँ
तुम्हारी वो ही सूरत तो
बसी है मन प्रांगण में
तुम उधर हो मज़बूर
इधर मैं भी
पर भूला नहीं
छण भर भी तुम्हे
कर्तव्यों की
पुकार पर हमने
दी है कुर्बानी
तुम वहां खुश रहो
यह दुआ मैं करता हूँ
अपना फ़र्ज़ ठीक से
अंज़ाम करो
यह दुआ करता हूँ
मैं भी खुश रहूँ
यह दुआ तुम करो
अपने फ़र्ज़ को
अंजाम कर सकूँ
यह कामना करो
हम मिलेंगे
अपने अपने
अंजाम दिए
फ़र्ज़ों के साथ
दोनों नदियों की
धार का
पुनः संगम होगा
सुख भरी डुबकी होगी
और तुम्हारा साथ
वोह सुस्वादु भोजन
और आत्मतीयता
उसी की चाह में
इंतज़ार में
कटेंगे यह दिन भी
तुम परेशान मत होना
मेरी खातिर
मैं भी धीरज धरूँगा
तुम्हारी खातिर
आखिर इंतज़ार का भी
अपना मज़ा है
वोही मज़ा तो
मैं अब ले रहा हूँ
कटते जा रहे है
दिन पर दिन
वोह दिन भी फिर
ज़रूर आएगा
जब हमारे
बीच का फ़ासला
खुद ही कट जायेगा
खुद ही कट जायेगा
आमीन आमीन आमीन
(समाप्त)
कविता : मरने की दुवाएँ .....माँगते लोग
बुड्ढ़ा सोंचता है कि
वो क्यों नहीं मरता ……?
इतने कष्टों के बाद भी
वो ज़िंदा क्यों है ……..?
दिखाई नहीं देता
सुनाई नहीं देता
हज़ारों कष्ट ..
ईश्वर भी भूल गया है
काश उठा ले अब तो
तीमारदार भी सोंचता है कि
ये बुड्ढ़ा क्यों नहीं मरता ?
बस जीता जा रहा है बेवजह
न काम का न काज का
बिला वजह की तकलीफ
पर बुड्ढ़ा है कि बस
जिए जा रहा है
अपनी तमाम
तकलीफों के बावजूद
तकलीफों के बावजूद
बुड्ढे के कारण
कहीं जा नहीं सकते
कहीं जा नहीं सकते
कहीं आ नहीं सकते
बस मोह में फँसे हैं
जिंदगी गारत है
खुद भी बुढ़ाते जा रहे हैं
अपनी जिंदगी का
मज़ा नहीं ले पा रहे हैं
मज़ा नहीं ले पा रहे हैं
कब मिलेगी निजात
इस बूढ़े से
अब दोनों ही मज़बूर हैं
बुड्ढा मरता नहीं
तीमारदार फ्री होता नहीं
ईश्वर भी भूल गया
बीमार को तीमारदार को
कैसी अजीब लीला है कि
जिस माँ बाप बुज़ुर्ग की
हम इज़्ज़त करते हैं
सदा मान देते हैं
बूढ़े होने पर
उनकी ही मौत की
उनकी ही मौत की
दुवाएँ मांगते हैं
कभी स्वार्थवश तो
कभी निःस्वार्थ
कभी निःस्वार्थ
सच यदि बुढ़ापा
आता ही नहीं
आता ही नहीं
यूँ ही चल देते
एक दिन
एक दिन
हँसते खेलते
पर ऐसा
होता ही कहाँ है ……?
होता ही कहाँ है ……?
काश ऐसा होता
काश ऐसा होता
तो बीमार तीमारदार
दोनों बच जाते
आमीन आमीन आमीन
(समाप्त)
कविता :अहिंसा और कायरता .......
आइये हम समझ लें
अहिंसा और कायरता के बीच
एक महत्वपूर्ण और बड़ा अन्तर
ताकि फिर गल्ती की सम्भावना न रहे
कि अहिंसा केवल सबल की होती है
जो अपने प्रति की गयी हिंसा का
उससे बड़ी हिंसा से भरपूर जवाब दे सकता है
पर देता नहीं अपने पर संयम रखता है और
अपनी सबलता का प्रदर्शन करते हुए
हिंसा करने वाले को केवल एक बार
चेतावनी देता है पूरी संजीदगी और सबक के साथ
कि दुबारा गल्ती किया तो बहुत पछताओगे
धूल चाटोगे अपने जख्म सहलाओगे
अहिंसा और कायरता के बीच
एक महत्वपूर्ण और बड़ा अन्तर
ताकि फिर गल्ती की सम्भावना न रहे
कि अहिंसा केवल सबल की होती है
जो अपने प्रति की गयी हिंसा का
उससे बड़ी हिंसा से भरपूर जवाब दे सकता है
पर देता नहीं अपने पर संयम रखता है और
अपनी सबलता का प्रदर्शन करते हुए
हिंसा करने वाले को केवल एक बार
चेतावनी देता है पूरी संजीदगी और सबक के साथ
कि दुबारा गल्ती किया तो बहुत पछताओगे
धूल चाटोगे अपने जख्म सहलाओगे
कायरता कमजोर की होती है
अपने से बलशाली देख पसीने छूट जाते हैं
उसकी हिंसा का जवाब न दे सकने की मजबूरी
उसे चुप रहने को मजबूर करती है
दुम दबा कर चुपचाप निकल लो
ऐसा उसकी अक्ल कहती है
अपने से बलशाली देख पसीने छूट जाते हैं
उसकी हिंसा का जवाब न दे सकने की मजबूरी
उसे चुप रहने को मजबूर करती है
दुम दबा कर चुपचाप निकल लो
ऐसा उसकी अक्ल कहती है
और हम एक देश के रूप में क्या करते है
चीन 19 किलोमीटर अन्दर तक आया
अपना बेस बनाकर महीनों जमा रहा
यह् चीन की जमीन है यह बताया
हमारी ही सेना की पेट्रोलिंग पार्टी को
हमारी जमीन से वापस भगाया और हम
अपनी ही जमीन से अपने बंकर तोड़
टेंट हटा कर अपमानित होकर वापस लौट आये
अपना बेस बनाकर महीनों जमा रहा
यह् चीन की जमीन है यह बताया
हमारी ही सेना की पेट्रोलिंग पार्टी को
हमारी जमीन से वापस भगाया और हम
अपनी ही जमीन से अपने बंकर तोड़
टेंट हटा कर अपमानित होकर वापस लौट आये
एक तरफ हम अपनी पीठ ठोंककर कहतें हैं
कि भारतीय फ़ौज विश्व में सर्वश्रेष्ट है
हम हर मुकाबले को तैय्यार हैं
पर मुकाबले के समय अपनी
दुम दबाते हैं ! पता नहीं हम ऐसा क्यों करते हैं ?
फ़ौज को उचित कार्यवाही की इजाजत नहीं
हमारा नेतृत्व कमजोर और कायर है
शान्ति का ठेका शायद केवल हमने लिया है
कि भारतीय फ़ौज विश्व में सर्वश्रेष्ट है
हम हर मुकाबले को तैय्यार हैं
पर मुकाबले के समय अपनी
दुम दबाते हैं ! पता नहीं हम ऐसा क्यों करते हैं ?
फ़ौज को उचित कार्यवाही की इजाजत नहीं
हमारा नेतृत्व कमजोर और कायर है
शान्ति का ठेका शायद केवल हमने लिया है
वे आये हमारी सीमा में हमारे सैनिक मारे
उनके सिर तक काट ले गये
और हम राष्ट्र के गम को
और हम राष्ट्र के गम को
उसके भावनाओं को उसके गुस्से को
समझ न पाये जवाब न दे पाये
यह क्या है कमजोरी और कायरता या दोनों
हम उन्हें मार कर उनके सिर क्यों नहीं काटते
जो वे खाला जी का घर समझकर
समझ न पाये जवाब न दे पाये
यह क्या है कमजोरी और कायरता या दोनों
हम उन्हें मार कर उनके सिर क्यों नहीं काटते
जो वे खाला जी का घर समझकर
बेख़ौफ़ चले आते हैं
आखिर ऐसी क्या मजबूरी है
हमारी जनता , सेना और हमारा जमीर
जवाब चाहता है! क्या हमारे पास कोई जवाब है ?
क्या हम एक कायर राष्ट्र कहलाने को तैयार हैं ?
मेरा जवाब नहीं है…… आपका क्या जवाब है ?
जागो देश जागो, पूरे जोश से, दमखम से जागो
देश को कायरता पूर्ण बेशर्मी से बाहर निकलो
आखिर ऐसी क्या मजबूरी है
हमारी जनता , सेना और हमारा जमीर
जवाब चाहता है! क्या हमारे पास कोई जवाब है ?
क्या हम एक कायर राष्ट्र कहलाने को तैयार हैं ?
मेरा जवाब नहीं है…… आपका क्या जवाब है ?
जागो देश जागो, पूरे जोश से, दमखम से जागो
देश को कायरता पूर्ण बेशर्मी से बाहर निकलो
कायरता और अहिंसा का महत्वपूर्ण फर्क
समझो और जानो, कुर्सी की अस्मिता पहिचानो !
आत्म सम्मान से जीना जरूरी है
ये तो जानो ! इतना तो जानो
पर दुर्भाग्य से किसी को गल्ती समझ नहीं आ रही
गिनती और आंकड़े से
यह बताने मे तल्लीन हैं कि सरकार से
ज्यादा घटनाएँ पिछले सरकार के समय हुयी
यानि की अपनी कायरता को उचित ठहरा रहे है
ऐसे में परमपिता से प्रार्थना हैसमझो और जानो, कुर्सी की अस्मिता पहिचानो !
आत्म सम्मान से जीना जरूरी है
ये तो जानो ! इतना तो जानो
पर दुर्भाग्य से किसी को गल्ती समझ नहीं आ रही
गिनती और आंकड़े से
यह बताने मे तल्लीन हैं कि सरकार से
ज्यादा घटनाएँ पिछले सरकार के समय हुयी
यानि की अपनी कायरता को उचित ठहरा रहे है
कि इस महान देश को
विपदा से बचाये और
इसके नेतत्व को सदबुधि दे
विपदा से बचाये और
इसके नेतत्व को सदबुधि दे
आमीन आमीन आमीन
आइये सब मिल कर प्रार्थना करें
(समाप्त)
विशेष नोट : प्रस्तुत कविता ३ साल पाहिले लिखी गयी
थी तब से परिस्थितियों में काफी सुधार हुवा है
थी तब से परिस्थितियों में काफी सुधार हुवा है
सोंच विचार :देशद्रोही कौन होता है .....
देशद्रोही कौन होता है
_ जिसका विदेशी बैंकों में गुप्त खाता होता है .. _जिसका विदेशियों से गुप्त सम्बन्ध होता है… _जो देश के टुकड़े टुकड़े करके राज करने का सपना देखता है _जो शत्रु राष्ट्र को धन देने की बात करता है … _जिसके बच्चे कान्वेंट में पढ़ते है और स्वयं हिंदी हिंदी करता है .. _जों ऊपर से दहेज़ विरोधी है …और चुपचाप दहेज़ लेता है … _जो जाति पांति के ..धर्म के नाम पर देश में दंगे कराता है ….. _जो पब्लिक क पैसा ……. डकार जाता है .. _जो निजहित को देशहित के ऊपर रखता .. और निभाता है .. _जो अपराधियों …तस्करों को प्रश्रय देता है .. _जो कालाबाजारी को ……….बढ़ावा देता है … _जो गुंडाराज ..चलाता है ..माफिया चलाता है … और वोह भी देशद्रोही है ………….. _जो उपरोक्त कों सहता है .और चुप रह जाता है .. मेरे विचार से .. सबसे बड़ा देशद्रोही वही है वही है … क्योकि उसकी यह भूमिका ही सही नहीं है … सही नहीं है ..वह आँख मूँद कर सोया है …….. देश का भाग्य भी इसीलिए सोया है … इस देश के संसाधनों को जो बिंदास चरते हैं … अपनी अपनी जेबें और तिजोरियाँ भरतें हैं … बेहिसाब .. .अविराम … देश विरोधी अवाम विरोधी . .हरकतें करतें हैं … ऐसे छुट्टे सांड जब …बे रोकटोक …. देश की धन संपत्ति .. दौलत चरते हैं … तब इस देश के आम मानव … तथाकथित भारतीय नागरिक …. सो कर ….. .या रो कर …….. गुजारा करते हैं … गुजारा करते हैं …. बस गुजारा करते हैं … (समाप्त ) हम भारतवासी अवतारों का इसी विश्वास के साथ इंतजार करतें हैं कि वे हमें मुसीबतों से बचायेंगे स्वयं कुछ नहीं करते और सब अन्याय चुपचाप सह्तें हैं |
कविता : तुम बिन ......
मैंने तुमसे प्यार किया है
मेरा दिल तुम पर वार दिया है
तुमने तो की मनमानी
तुमने मेरी क़दर न जानी
मुझको यूँ ही छोड़ गयी हो तुम
दिल को मेरे तोड़ गयी हो तुम
तुमको तो प्रभु जी ने बुलाया
पर मेरा बुलावा अब तक न आया
कैसे तुम बिन जियूँ बतलाओ
इस दिल को राहत पहुँचाओ
तुम बिन जिया न जाता अब तो
तुम बिन मरा भी न जाता अब तो
सोंच सोंच पगला जाता हूँ
इस दुनिया में अकेला घबरा जाता हूँ
तुम्हे चैन पड़ती है कैसे
मुझ बिन रहती हो तुम कैसे
उस जहाँ में क्या
तुम बिल्कुल ठीक ठाक हो
खुश हो या कि उदास हो
क्या मुझे याद करती हो
क्या तुम अब भी
मुझ पर मरती हो
कैसे कटते हैं सब पल छिन
कैसे रहती हो तुम मुझ बिन
मेरी हसीना मेरी प्यारी
क्यों दे गयी तुम ये बीमारी
न तो मैं जी पाता हूँ
और न ही मर पाता हूँ
याद तुम्हारी बहुत आ रही
दिल से रुलाई छूट पड़ रही
आंसू की धारें बहती हैं
सिसकियों की लहरें उठती हैं
रो रो कर हलकान हो रहा
मेरा बुरा हाल हो रहा
पहिले कभी ऐसे न रोया
रो रोकर आपा न खोया
आँसू निकलते ही तुम आ जातीं
उन्हें पोंछ सिर न में हिलातीं
सहारा देकर तुम मेरा हौसला बढ़ातीं
अब जब पास नहीं हो तुम
अब जब दूर गयी हो तुम
कौन मुझे हौसला दिलाये
आंसूं पोंछे और हँसाये
भगवान जी से प्रार्थना ये करना
मुझे भी शीघ्र बुला ले ये विनती करना
इतना तो तुम कर ही सकती हो
और मुझे प्रसन्न कर सकती हो
बोलो क्या तुम इतना करोगी
मुझ पर यह एहसान करोगी
(समाप्त)
कविता : हमें सपोर्ट करो वर्ना .....
हमें सपोर्ट करो वर्ना ………
सारे पुराने मामले
दोबारा खोल देंगें
दोबारा खोल देंगें
वोह आय से अधिक सम्पत्ति
दंगे लूट हत्या और
हत्या की साजिश के केस
हत्या की साजिश के केस
बलात्कार जमीन हडपने के केस
सब दुबारा खोल दिये जायेंगे
तमाम नये सच्चे झूठे केस
लगा दिये जायेंगे
पहुचोगे जेल
नहीं होगी बेल
बिना वकील बिना अपील
हमारे सुयोग्य अधिकारी
सब क़ुबूल करा लेंगे
सब क़ुबूल करा लेंगे
वोह अपराध जो तुमने किये
और वोह भी जो तुमने नहीं किये
और वोह भी जो तुमने नहीं किये
सब कुछ और हर कोई
हमारे डायरेक्ट कन्ट्रोल में है
फिर वोह व्यक्ति हो या संस्था
देखो इस देश के प्रमुख
विरोधी नेताओं की नकेल
विरोधी नेताओं की नकेल
हम कैसे थामते हैं और
उन्हें अपने इशारों पर नचाते हैं
उन्हें अपने इशारों पर नचाते हैं
विरोध किया केस खुल गये
और सपोर्ट किया केस बंद
सारा खुला खेल है बिंदास
अतः अगर भला चाहते हो तो
हमें सपोर्ट करो वर्ना
हमें सपोर्ट करो वर्ना
भुगतने को तैयार रहो
हर कोई जानता है उस नेता को
जिस पर चला बरसों केस
कुछ नहीं हुवा
कुछ नहीं हुवा
क्योंकि वोह हमें सपोर्ट करता था
पर जैसे ही उसका स्वर विरोधी हुवा
गया पाँच साल को जेल
संसद की सदस्यता गयी अलग
अब समझदारों को इशारा काफी है
अपनी समझदारी का परिचय दो
हमें सपोर्ट करो
कई विरोधियों की अकल खुल गयी है
वे हमारे सपोर्ट में आ गये हैं
हमारी तरफ से भी
उनके सब गुनाह माफ़
उनके सब गुनाह माफ़
सारे केस वापस सब पाक साफ़
हमें सत्ता चलानी आती है
सिर्फ आती नहीं उसका
पीढियों का लम्बा अनुभव है
हमारे सामने कौन टिक सकता है
खानदानी वफादारों की
फ़ौज है हमारे पास
फ़ौज है हमारे पास
अथाह अकूत पैसा और
मसल पॉवर सब है हमारे पास
मसल पॉवर सब है हमारे पास
अतः यदि अपना भला चाहते हो
हमें सपोर्ट करो
अपना भला बुरा तुम जानो
भगवान परमपिता तुम्हे
मौके की नजाकत
समझने की बुध्धि दें
समझने की बुध्धि दें
और तुम न केवल
बिलावजह मुसीबत से बचो
बिलावजह मुसीबत से बचो
हमारे साथ अकूत
सुख सुविधा का भोग करो
सुख सुविधा का भोग करो
हम उम्मीद करतें हैं
कि ऐसा ही होगा
कि ऐसा ही होगा
ऐसा ही हो ऐसा ही हो
आमीन आमीन आमीन
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