Wednesday 25 March 2015

कविता :मृत शरीर और दुनिया

पड़ा       था    मृत     शरीर
बिलखते         थे   परिजन
बाहर     लोगों   की      भीड़
घर   में    पास     पड़ोस व्
रिश्ते     की         महिलाएँ 
कैसे    हुवा ..  कब      हुवा
कल             तक        तो
अच्छे        खांसे           थे
भाई         साहब          तो
काफी      एक्टिव          थे
किसी    नए  के आने    से
रुलाई    फूट    पड़ती    थी 
वरना         गप         शप
मुर्दा          पड़ा            है
शाँत         चुप         चाप
धर्मपत्नी                बेहोश.
कभी     होश    आता     है
तो        चीखती           है
फिर         बेसुध     बेहाल
इनकी              लडकियाँ
अभी    तक नहीं  आ पायीं
दूर     का     मामला     है
शायद     शाम तक    आएं
तब    तक  इंतज़ार   करेंगें
लोग    भी     फुर्सत      में
चलो         आज         का
आफिस                   बचा
भीड़         धीरे          धीरे
छटने      लगती           है
अब    घर      पर         है
केवल ....... मृत      शरीर
एक    अधेड़     बेसुध पत्नी
एक       नौकरानी      और
एक         आध       अन्य
सभी         चले         गए
नौकरानी      है     जो  पूरी
तन्मयता                   से
भागदौड़     कर     रही    है
मालकिन                   को
पानी        पिलाती         है
ढांढस         देती           है
धीरे       धीरे       रिश्तेदार
आने         लगते          हैं
रुदन                        का
सिलसिला         जारी    है
बर्फ    का      इंतजाम करो
गर्मी                          में 
लाश        सड़        जाएगी
हाँ                          भाई
खबर    मिल        गयी  हैं
वे    हवाई      जहाज     से
आ            रहें             है
शाम        तक       पहुंचेंगे
पर        तब             तक
लाश                         को
सँभाल  कर   रखना   होगा
आखिर उनकी लड़कियों को
उत्तर  भी    तो   देना   होगा
धीरे धीरे समय बीत   रहा है
धूप सर     पर चढ़   आई है
अधेड़        पत्नी           का
रो    रोकर  बुरा       हाल है
बेचारी     रो            रो कर
बेहोश       हो        जाती है
ऑफिस    के लोग  आते हैं
हाँथ        जोड़      देते    हैं
बहार       जाकर         एक
दुसरे      से  चर्चा  करते  हैं
कब          तक       उठेगी
शाम     सुन              कर
सुकून  की      साँस लेते हैं
चलो आज की  हाज़िरी बची
चन्द      होशियार         लोग
जो मिटटी के नाम पर आये थे
टेलिफोन    या      बिजली का
बिल भरने की सोंचने लगते है
चन्द    अपने     अन्य   काम
निपटने की     सोचने लगते हैं
समय      धीरे धीरे बीत रहा है
घर में चन्द    रिश्तेदार  दोस्त
धीरे धीरे    आपस में बतियाते
जो नहीं है उसकी चमड़ी उधेड़ते
बर्फ          आ           चुकी      है
एक      बार     फिर       हल चल
बर्फ    की      सिलें लगाई जातीं है
मृतक देंह उठा कर लिटाई  जाती है
तैयारियाँ         चल           रहीं हैं
पंडित         बुलाने               की
डेथ     सर्टीफिकेट       बनवाने की
घाट    पर ले        जाने का जुगाड़
फैक्ट्री         का                  ट्रक
कुछ             नेता             लोग
उसके     भी       जुगाड़   में     हैं
साहेब         अच्छे    आदमी    थे
बात   व्योहार     बहुत अच्छा   था
ऐसा         भी       बतियातें     हैं
ये       साले       जी   एम       ने
साहब         की   जान     ले   ली
वार्ना     कुछ   वर्ष  और  जी जाते
साला       बड़ा       हरामी        है
 पर      खैर    लाश     पड़ी     थी
चुपचाप         बातें      जारी      हैं
जारी रहेंगी   लड़कियों के आने तक
फिर       होगा          उग्र    क्रंदन
माँ    बेटियाँ     चिपट के    रोयेगीं
पिता           को                 देख
भर     भर आएँगी     उनकी आँखें
हाँ         दामादों       के         भी
आँसू           बह     रहे        होंगे
पर    उनके  नन्हे मुन्ने अवाक् से
कभी           मम्मी           कभी
पापा         को       देखते     होंगे
"मम्मी नाना    को क्या हो गया "
ये          लेटे          क्यों       हैं
हमें       प्यार    क्यों   नहीं करते
इन          नन्हे      मुन्नों      के
प्रश्नो             का             जवाब
आसान          होते         हुए भी
 बड़ा             कठिन             है
"तुम्हारे           नाना            जी
भगवान      को    प्यारे   हो गए "
ये भगवीन को   प्यारा क्या होता है
"चुप      रहो"       बड़े          होगे
 तो               जान         जाओगे
लड़कियाँ        डाटती               हैं
चुप           होते          हैं     बच्चे
उनका      नाना   चुपचाप  सोया है
और     नानी भी    बेसुध  बेहोश है
समय      धीरे धीरे       बीत रहा है
(समाप्त)


कविता :तलाश ईश्वर की

आकाश के    चाँद     में

तेरा                  अक्स
नज़र     आता         है
मुझे    हर     चेहरे    में
बस      तेरा        चेहरा
नज़र       आता        है
अंदर    भी     तू    और
बाहर    भी     तू   ही तू 
मुझे   हर  नज़ारा  बहुत
खूबसूरत  नज़र आता है
कहाँ    ढूँढूँ    तुझे  पाऊँ 
कैसे मन को   समझाऊँ
हे        ईश्वर           मैं
कैसे सुख   चैन     पाऊँ
जीवन    के बचे     छन
कैसे      मैं       बिताऊं
तेरे    ही   ख्यालों     में
मेरा दिल सुकून पाता है
जर्रे जर्रे में   बस   तू ही
नज़र      आता        है

Monday 23 March 2015

कविता :क्या ढूंढते हो

Saturday 21 March 2015

सोंच विचार : रेप या बलात्कार समस्या और समाधान



आजकल हम टी  वी पर देखते हैं अखबारों   में
पढ़ते हैं रेप या बलात्कार की आठ दस घटनाएँ
तो रोज हमारे संज्ञान में आती ही हैं कभी कभी
ये घटनाएँ बहुत हृदयविदारक और नृशंस होती
है जैसे गैंगरेप  और तड़पाकर  कर अमानवीय
तरीके से की गयी  हत्या  छोटी छोटी बच्चियों

से दरिंदगी बाप या भाई या सगे सम्बन्धी द्वारा
बारम्बार बलात्कार और सम्बंधित महिला या
लड़की की   कोई मजबूरी का फायदा    उठाकर
उसके साथ बलात्कार ये सब देख   या सुनकर
हम आप क्या करते हैं ? कभी कभी मूड ख़राब
हो जाता है कभी ज़माने को कोसते कभी न्याय
व्यवस्था को कभी पुलिस को फिर थोड़े देर बाद

सब  भूलकर अपनी    दिनचर्या   में लग जाते
हैं क्या कभी आपने    गौर किया   है कि    इन

घटनाओं के पीछे कारण क्या हो सकते है कुछ
लोग कहते हैं लड़कियों का खुलापन समाज में
उन्हें मिली नयी नयी  आजादी  उनके पहिनावे
फैशन कुछ लोग लड़कियों की  भ्रूण हत्या और
इसके   परिणाम स्वरूप    उत्पन्न स्त्री   पुरुष

अनुपात में भयंकर    अंतर जो हमारे  देश  के
विभिन्न भागों   में बहुतायत है   कहीं कहीं ये
प्रतिहज़ार सात सौ या इससे     भी कम है तो
इस स्थिति में बहुत    सारे लड़के कुवारे  रहने
पर  मजबूर हैं   और शारीरिक   भूँख के चलते
अपराध जनमते हैं  हमारा सामाजिक सोंच कि
लड़की बंश नहीं   चलाती उसके लिये लड़के ही
चाहिये लड़की की शादी में दहेज़ भी देना होता है
और पगड़ी भी नीची होती है  समधियो के आगे
नाकभी रगडनी पड़ती हैऔरउनके नखरे झेलने
पड़ते हैं अतः बवाल कौन   मोल ले  लड़की को
गर्भ में ही मार दो बहुत सारी   लडकियाँ उचित
देखभाल या नेगलेक्ट से बचपन में ही मरजाती
है और यह स्थिति     तब तक नहीं     बदलेगी

जबतक हमारी      स्त्री जाति के प्रति सोंच नहीं
बदलती हमारी संसद में काफी संख्या में  स्त्रियाँ
होते हुवे भी महिला     आरक्षण   बिल बरसों से
इसी सोंच के कारण     लटका   है महिलाओं पर
अत्याचार के मामलों में महिलाएं ही काफी आगे
है जिनमे सास ननद जेठानी आदि शामिल होती
हैं उन्हें क्रमशः अपना   लड़का  भाई   या    देवर

अचानक दुसरे   के अधिकार में जाता  दीखता है
और वे अकारण  नयी बहू के विरोध में उठ खड़ी
होती हैं सारे यत्न ये  होते है कि    नवागत  कहीं

अपने पति को बस में न कर लेऔर यदि घर के
पुरुषों ने उसकी  उसकी सुन्दरता   की या उसके
बनाये खाने की तारीफ    कर दी तो ये    जलन

और विरोध भड़क उठता है  और    नयी बहू को
परेशान करने उसे घटिया और निकम्मा साबित
करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है  यदि   दो तीन

साल में बच्चे नहीं हुए तो    बिना डाक्टरी जाँच
उसे बाँझ घोषित करने में जरा भी देर   नहीं की
जाती पति के शराबी जुवारीहोनेऔ रअय्याशियों

के लिये भी बहू जिम्मेदार घोषित कर दी  जाती
है सब  उसे  ही कोसते है   और   वो     रानी से

नौकरानी बन   जाती है हमारे   समाज की सोंच
है   कि लड़की की डोली    ससुराल जाती है और
केवल अर्थी ही वहां से      निकलती    है अर्थात

उसके मायके का कोई  सहयोग   या   साथ उसे
नहीं मिलता और वो घुटते घुटते एक  दिन  मर
जाती है

हमारा धार्मिक सोंच कि   लड़का   ही चिता  को
आग   लगाना चाहिये     तभी स्वर्ग मिलता है
समाज में लडको   के   महत्व  को   बढाता  है
विशेष देखभाल प्यार पढने और आगे बढ़ने के
अवसर लड़कों   को   मिलते हैं मेधावी होने के
बावजूद लड़कियों को कम     योग्य   लड़के से

सुविधाएँ और अवसर   कम   दिये जाते हैं इस
सोंच    के कारण    कि लडकियाँ पढ़ लिख कर
दूसरे   के    घर   को   लाभ देंगी    हमें   नहीं

लडकियों के प्रति हमारा    ये ही रवैय्या   उन्हें
दब्बू और    लड़कों  को  उद्दंड       बना देता है
और समाज  दोष    लड़कों में नहीं   लड़कियों
में ढूँढने लगता है बलात्कार होने पर लोग दोष
लड़कियों में ढूढने लगते है   उसी  ने बहकाया
होगा वोही गलत है हमारे एक नेताजी तो यहाँ

तक बोल गये रेप पर कि लड़कों से  गलती हो
ही जाती है तो क्या इसके लिये उन्हें फांसी पर
चढ़ा दिया जाये हमारी सरकार  आएगी तो हम

ऐसा कानून हटा देंगे ये और बात है कि उनकी
सरकार नहीं आयी


अब फिर से मुख्य विषय पर लौटते   है  तमाम
पृष्टभूमि हमने चर्चा की स्त्रियाँ हमारे समाज का
कमजोर पर महत्वपूर्ण अंग हैं वो माँ भी है बहन
भी बेटी भी और बीबी भी  विभिन्न    रूपों में वे

हमारे जीवन का अंग हैं   उनके बिना समाज की
कल्पना नहीं    हो    सकती वे  नये   जीव   को

संसार में लाती हैं पाल पोस उसे बड़ा  करती   है
उन्हें हम उपेक्षित कैसे   छोड़ सकते है  तो  क्या
किया जाय जिससे रेप या   बलात्कार पर   काबू
पाया जा सके


मेरी समझ में निम्न उपाय कारगर होंगे:-
1-स्त्री पुरुष  लिंगानुपात में   सुधार     लड़कियों
    की भ्रूण हत्या पर सख्ती  से रोक  बचपन में
    उनकी   अनदेखी से अकाल मृत्यु को रोकना
2-लडकियों  की   पैदाईश को बढ़ावा उन्हें बचपन
    से बढ़ावा दिया जाना जिससे वोआगेबढ़  सकें
3- रेप   को   जघन्य अपराध घोषित करना और
    कड़े दंड के साथ जुर्माने का प्रावधान आदतन
   पाये जाने वाले अपराधी को मृत्युदंड की सजा
   जो अपराध होने के तीन माह में दे दिया जाना
   चाहिये आखिर  वोह     किसी की जिन्दगी से

  खेला ही तो था इसी कड़ी में यह भी महत्वपूर्ण
  है कि झूँठे सिद्ध होने पर याचिकाकर्ता को   भी
  कड़े दंड मिले जिससे झूंठे मामलेचलाने वालो

  पर रोक लगे और इस     कानून का दुरूपयोग
  रोका जा सके जो किसी को फ़साने धन वसूली
  ब्लैक मेल के लिए उपयोग हो सकता है
4-समाज का रवैय्या महिलाओ के   प्रति बदले
   उन्हें  आपेक्षित सम्मान  मिले    रेप पीड़ित

  महिला को समाज से सहानुभूतिऔर स्वीकार
मिले धिक्कार नहीं पीड़ित को   न्याय   दिलाने
में समाज की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता
समाज  ये माने और स्वीकार करे कि हमारी बहू
भी किसी की बेटी है और    हमारी  बेटी  को  भी
दुसरे घर जाना है  यदि ये    ही व्यवहार   उसके

साथ उसकी ससुराल    में हुवा तो   क्या    हमें
वो स्वीकार होगा एक ऐसे देश में जहाँ नारी दुर्गा
लक्ष्मी सरस्वती   जैसे रूपों  में    पूजी जाती है
उसकी  वर्तमान दशा लज्जा की ही बात है

आशा है देश में    सही  दिशा में सोंच  शुरू होगी
और हम इस     लज्जा दायक   बीमारी रेप  या
बलात्कार से     निजात पा सकेंगे  और अपनी
संगिनी सह धर्मिणी स्त्री   जाति को जो  माँ भी
है बहन भी बेटी भी पत्नी भी को उचित सम्मान
दिला सकेंगे जिसकी वोह पात्र है     और हमारा
गौरव भी है

(समाप्त)

Friday 20 March 2015

कविता : रोटी के पीछे चलता ....इन्सान

तुमसे कुछ कहना
व्यर्थ है ……क्योंकि
तुम्हारी आँखों के
सामने रोटी है और
रोटी के उस पर
तुम्हें कुछ नहीं दीखता

दीखता तो तुम्हे इस
पार  भी  नहीं क्योकि
इधर भी तुम्हारे
स्वार्थ ही हैं
मुँह फाड़े      भूंखे पेट
तुम्हारी आशाओं की झीलें
आकांछाओं के पहाड़

और वोह
जिसने तुम्हारी
आँखों के सामने
रोटी लगाईं है
तुम्हें ले जा रहा है
खरामा … खरामा
अपने चुनिंदा रास्तों पर
अपने स्वार्थों की ओर
और तुम दुम हिलाते
रोटी पर अपलक
निगाहें गड़ाये
चल रहे हो उसके
पीछे पीछे पर
वोह रोटी तुम्हे
कभी नहीं देगा
हाँ कभी कभी
एकआध टुकड़ा फेंककर
तुम्हारी रोटी की चाह
और बढ़ायेगा
और अपना
अनुयायी बनायेगा
तुम्हे अपने
रास्तों पर चलाएगा
और तुम चलोगे उसके पीछे
निःशब्द …दुम  हिलाते
मैं कहता हूँ
कि ईश्वर ने तुम्हे
बनाया था बुद्धिमान बलवान
और प्रतिभाशाली  भाग्यवान
पर तुम क्या बन गये ……?
ज़रा सोंचो
क्या रोटी के पीछे
इस प्रकार चलना
दुम हिलाते ….उचित है
भूल गए सब इंसानियत
सारे ………..पाठ
अतः अब भी समय है
कि सोंचो तुम कौन हो …?
किस प्रयोजन से तुम
धरती पर भेजे गये
उस परमपिता की इच्छा का
उसके द्वारा तुम्हें सौंपे कामों का
क्या होगा यदि
तुमने बिता दिया सारा जीवन
रोटी के पीछे चलते चलते
अभी भी तमाम घड़ियाँ बाकी हैं
जिंदगी की      जवानी की
ओज की        जोश की
अतः जियो भगवान  के पुत्र बनकर
करो अच्छे कर्म इस धरती पर
ईश्वर की इच्छा जानो    समझो
उसी की पूर्ती में लगा दो सारा जीवन
इस माया को
जिसे रोटी कहतें हैं
भोगो …पर उतना ही…कि …
जितने से बस चलता रहे शरीर
और शरीर करता रहे
भगवन के सौंपे तमाम काम

अतः छोडो दुम हिलाना
रोटी के पीछे पीछे चलना
जानो रोटी के उस पर भी
एक भरी पुरी दुनिया है
जिसकी तुमसे तमाम
आशाएं हैं .   अपेक्षाएं हैं
उन्हें समझो    पूरा करो
यह जीवन भी संवर जायेगा
और वोह भी और
ईश्वर की इच्छापूरी करने से तुम्हे
मुक्ति की राह  मिल जाएगी

मुक्ति की राह  मिल जाएगी
मुक्त की राह मिल जायगी
(समाप्त)

Wednesday 18 March 2015

सोंच विचार :नारी सशक्तिकरण

  1. बड़ीअच्छी  बातहैआज   नारी सशक्तिकरण के
  1. विषय मेंबहुत कुछ किया    जा   रहा है   और
  2. कहा   जा रहा है जनता औरसरकार दोनों पूर्ण
  3. जागृत है   कानूनपर कानून बन रहें हैं महिला
  4. पुलिस   महिला   थाना   महिला  बैंक   कुछ
  5. उदाहरण है आज स्थिति यह है किमात्र किसी
  6. भी व्यक्तिके विरुद्ध मात्र   एफ  आई आर कर
  7. देने   से चाहे  वो   कितना  भी   बड़ा     और
  8. प्रभावशाली    हो तुरत    कार्यवाही    होती है
  9. चिंता  का विषय है की इतने तगड़े कानूनों के
  10. बाद   भी स्त्रियों के खिलाफ अपराधों में  कोई
  11. कमी नहीं आई हैअपितु उनमे बढ़ोतरी ही हुई
  12. है बलात्कार एसिड हमले दहेज़  हत्याये मार्
  13. पीट घर निकाला जैसी   घटनाएँ तेजी से बढ़ी
  14. हैं छोटी बच्चियों  को  भी बक्शा  नहीं जा रहा
  15. अपराधी यदि असरदार घरों से हैं बेख़ौफ़ घूम
  16. रहे   हैं पुलिस प्रशाशन कानून सब     इनके
  17. सामने बौने हैं अब प्रश्न है कि अब क्या करें ?
  18. अतः एक बात साफ़ है कि और भी कुछ किया 
  19. जाना चाहिये समाज को जाग्रत और जागरूक
  20. होना होगा केवल उनकी  भागेदारी से ही सजा
  21. सुनिश्चित हो सकती है जागरूक जनता से ही
  22. आवश्यक  गवाह तथ   प्रॉसिक्यूशन में मदद
  23. मिल सकती है जैसे   आपके पड़ोस में    कोई
  24. घटना घटने पर   आप दखल देंगे  तो अपराध
  25. घटेंगे लोग अपराध करने में  डरेंगे याद रखिये
  26. आप की  बेटी   बहन किसी न किसी के पड़ोस
  27. में रहती है अतः   अलिप्त न रहें और जागरूक
  28. तथा जिम्मेदार   नागरिक का    फ़र्ज़ अदा करें
  29. तब ही हमारी बेटियों बहनों की रक्षा हो सकेगी
  30. और   तब   ही सरकार पुलिस या कानून कुछ
  31. कर पायेगा याद रखिये ये बात किभगवान भी

Saturday 14 March 2015

कहानी :चाँद से

Thursday 12 March 2015

कविता : जिस देश में

जिस देश में ……….
कोई जलनीति नहीं है
करोड़ों    टन    पानी
समुद्र में बाह जाता है
कहीं   बाढ़ ………तो
कही सूखा पड़जाता है
अभिशप्त   है  यह देश
जहाँ पानी    के   बहुतायत   रहते
आदमी   पानी को   तरस  जाता है
कहीं कहीं मीलों से ढो   कर लाता है
और  कहीं  बाढ़ में   घर बार सहित
बह  जाता है या डूबकर मर जाता है


(जबकि शर्म से मरना  इस देश के नेतृत्व को  चाहिये )


जिस देश में …………
नारी         की    कोई
नियति    नहीं       है
बिकती है     पिटती है
जिन्दा जलाई जाती है
दहेज़    की   मांग पर ……..
सबकुछ   लुटा  के भी
उसकी हत्या कर दी जाती है
वोह     माँ   बहिन      पत्नी
बेटी      सभी     रूपों     में
समाज    की सेवा करके भी
बोझ      समझी     जाती है
कन्या भ्रूण की हत्या होती है
उसके       जन्म          पर
रुदन        मच    जाता   है
जहाँ     कन्या का पैदा होना
दुर्भाग्य    माना    जाता   है
वोह    कितनी  भी योग्य हो
पढ़ी   लिखी   हो…….   पर
दहेज़    के    बाजार में  वह
मात्र       एक       कन्या है
जिसके       लिये    वर……
चाहे     वोह   जैसा    भी हो
खरीदा       जाता है     और
वोह   जमाई राजा कन्या को
चाहे    जैसे     रखे      सब
स्वीकार    किया     जाता है
जिस    समाज में   नारी ही
नारी     की    दुश्मन      है
सास       नामक       प्राणी
बहू    को जी भर सताता   है
स्पष्ट    है    कि         हमारी
नारी       असुरक्षित         है
कहीं      कहीं     भोली   और
कहीं         अशिक्षित        है
वो रोज मरती है मारी जाती है
बलात्कार      के    शिकार को
पुलिस   प्रेम    प्रकरण     कह
निपटाती                        है
वोह नित्य मृत्यु को   वरण करती है
उसकी इज़्ज़त धूल  में मिल जाती है
 
(जबकि शर्म से  मरना  इस देश के नेतृत्व को चाहिये )
 
जिस देश में …….
कोई भूमि नीति नहीं है
कहीं पसरा है रेगिस्तान
कही   पहाड ……पठार ……
खेती   योग्य भूमि चंद
बड़े लोगों के है कब्जे में
बटाई     पर     चढ़ा के
जो  मलाई     खा रहे है
मेहनतकश मज़दूर चाहे
भूँखा                   रहे
तिकड़मी आलसी  तोंदू
ऐश         कर     रहे हैं
किसान फसल पैदा करता है
बिचवनिया   खा   लेता   है
अढ़तिया      खा   लेता   है
गोदामों     में         भरकर
जमाखोर    ऐश    करता  है
कभी   कभी   तो फसल  की
लागत     भी  नहीं  मिलती
फसल  तो      प्रभुजी लगा दिये
पर अढ़तिया सही दाम नहीं दिये
किसान आठ  आठ आँसू रोता है
अपनी जवान  कमसिन बेटी को
खूसट   बुढ़ऊ को   व्याह देता है
वो      नित्य                जीता
और      नित्य   ही     मरता है
देश    में कोई कृषि नीति नहीं है
उत्पादों       को      बाजार    में
बेचने  की    कोई जतन  नहीं है
तमाम सरकारी खरीद का गल्ला
सड़ता         है       गोदामो  में
तथा   गरीब   भूँख से   मरते हैं
सड़कों    पर …..        गाँवों में
हमारी         कोई        कारगर
वितरण     नीति भी      नहीं है
और गरीबी       नित्य मरती है
 
(जबकि शर्म से मरना देश के नेतृत्व को चाहिये )
 
(समाप्त )

कविता :कुत्ते इन्सान से अच्छे


कुत्ते              खेलते                थे
मेमो           की          गोदों       में
नहाते     थे       महँगे    साबुनों   से
घूमते          थे             बेशकीमती
चमचमाती              कारों          में
उनके           नाम        होते       थे
महान       अँग्रेजों   के     नामों   पर
कुत्ता          हुआ     तो            जैसे
“हैरी ”       ” टैरी ”     या      “टॉम “
कुतिया           हुई                   तो
“जूलिया “  “जुलिना “   या “रोबिना “
“जैन्सी”                        ” नैन्सी “
ठाठ         से             पलते        थे
मटन          मच्छी         खाते     थे
मालिक         की           शान      थे
घरोँ              की          आन       थे

अब      ये        बात   और    थी  कि
ये        तमाम     बातें        नहीं  थीँ
किसी आम    भारतीय की किस्मत में
या         उनके       कीड़ों    के समान
बिलबिलाते             नँग         धडंग
गन्दे     बच्चों        की    किस्मत में
कि    कोई          तो              आता
जो              उन्हेँ             अपनाता
न          साबुन              न    गाड़ी
न           मेमों            की       गोद
न      महान     अंग्रेजो      के    नाम
न           मटन        न         मच्छी
यहाँ      तक तो        ठीक    था हुज़ूर
हमें           नापसंद          तो      था
पर       फिर    भी         था     मंजूर
किस्मत          का               फैसला
जो           जिसकी             किस्मत
में           था              उसे     मिला

पर        उस    दिन   पढ़ने को मिला
एक       अँग्रेजी दैनिक में    समाचार
जिसने     हिलाकर    रख         दिये
मेरी           आत्मा      के        तार
कि         एक       महानुभाव       ने
अपने       कुत्ते         के    नाम   पर

की      है      ट्रस्ट     की     स्थापना
जो            बाँटेगा             छात्रवृत्ति
और          देगा                सम्मान
उस                व्यक्ति               को
जो          शिक्षा        के   छेत्र      में

देगा        कोई   विलक्षण     योगदान
अपनी                मेहनत            से
पायेगा           यह      मान  सम्मान
इस           कुत्ते      के     नाम    पर
ट्रस्ट                देगा           सम्मान
वोह       कुत्ता     मनुष्य    से  ज्यादा
बन                जायेगा           महान
हाय     रे    देश    हमारे  प्यारे  भारत
तूने पा   ली    है हर तरह   की महारत
कुत्ते को   भी  सम्मानीय    दर्जा देता है
आदमी मगर   अपने भाग्य पर रोता है
आदमी मगर  अपनेभाग्य पर   रोता है
(समाप्त}