Wednesday 31 December 2014

स्वागत नव वर्ष का

आओ    करें   स्वागत      नव      वर्ष का
बने     यह          कारण   सबके   हर्ष  का
सब         तरफ              तमाम           हो
खुशियाँ …     और                   हरियाली
सबकी    बरक्कत     और   हो खुशहाली
सबकी       उम्मीदें     आशाएं  हों      पूरी
न    रहे किसी   की कोई  इच्छा     अधूरी
अपनी     कृपा के साथ  इश्वर का हाँथ हो
देश      के        विकास ……..     …और
अग्रसर होने    में   हमारा      भी हाथ हों
अपनी जिम्मेदारियों  सेहम  न  मुंह मोड़ें
अपने देश के साथ अपनी   किस्मत जोड़ें
देश है तो हम हैं देश नहीं तो हम भी नहीं
हमारे      लिए देश के सिवा कुछ भी नहीं
इसके लिए       सर्वस्व हमारा   है कुर्बान
देश है        मेरा दिल                और जान
प्रार्थना है किइस देश से अज्ञान अशिक्षा
बेराजगारी भ्रष्टाचार मिट जाये  और देश
के नागरिक देशभक्त जिम्मेदार बन जाएँ
नव वर्ष     सभी देश वासियों को शुभ हो
शुभ हो          शुभ हो                   शुभ हो
आमीन             आमीन            आमीन

Thursday 4 December 2014

कहानी : बिन फेरे हम तेरे

बात तब की है जब शादी व्याहों  में बारातें
होती थी  यानी   वोह एक दिन  वाली  नहीं
जैसी आजकल होती  है      बाकायदा ३-४
दिन की होती  थीं  द्वारचार  शादी    कच्चा
खाना या भात     कुँवर  कलेवा   शिष्टाचार
और तीसरे   दिन बिदाई,  बारात   में नाते
रिश्तेदार दोस्त नौकर चाकर मोहल्लेवाले
मिलाकर   150 से 250   तक लोग होते थे
बारात बसों   से   सड़कों तक   फिर    बैल
गाड़ियों या अध्धों पर गाती बजाती चलती
थी बड़ा मजा आता था


हाँ तो जब मैं नवी  कक्षा में  पढता था और
देखने   सुनने में अच्छा  खासा  दिखता था
कसरती खिलाड़ी बदन और आकर्षक मुझे
मेरे ममेरे भाई क़ी  शादी में बारात में जाने
का अवसर मिला पक्की सड़क से   कोई 5
किलोमीटरअंदर नदी किनारे वोह गाँव था
हमें वहाँ के स्कूल  में जनवासा दिया गया
पहुचने पर  भव्य स्वागत हुवा   एक तरफ
माँसाहारीऔर दूसरी तरफशाकाहारी  घड़ों
में भर कर देशी शराब का  भी इंतजाम था
जिसका बारातियों ने भरपूर मज़ा लिया


रात 10 बजे बारात   द्वारचार हेतु  वधु पक्ष
के  दरवाजे बाजे गाजे के साथनाचते  गाते
पहुची वहाँ भी भव्य स्वागत हुआ पूरा गाँव
स्वागत में लगा था  द्वारचार ,शादी  अगली
दोपहर कच्चा भात  ठीक  ठाक निपट गये
सब अच्छा चल   रहा था मैंने एक बात को
नोटिस    किया वधु पक्ष की एक  बड़ी बड़ी
आखों  वाली सुंदर कन्या   मेरी तरफ कुछ
ज्यदा ही आकर्षित हो रही थी कुछ न कुछ
हरकत  के साथ सामने आ जाती  पर मैंने
ज्यादा ध्यान नहीं दिया



फिर शाम   को   कुँवर कलेवा  हेतु  बुलावा
आया और हमारे दूल्हे भाई साहेब  के साथ
हम  5 सह्बेले लोग भी साथ गये  हमेंशादी
के  मंडप  के   नीचे बिठाया  गया   वहीँ पर
दहेज़ का घरेलू सामान भी  सजा था पलँग
एल्मारी ड्रेसिंग टेबल सोफा रेडियो बिजली
का पंखा सभी  कुछ    मैं  सोफे पर बैठा था
सामने ही  ड्रेसिंग टेबल थी   उसके शीशे में
मुझे अपने पीछे का नज़ारा साफ़ दिख रहा
था वोह लड़कीकई अन्य लड़कियों के साथ
शरारतों में लगी  थी हसीं  मजाक  का  दौर
चल रहा थाभैया की सास जी आयीं उन्होंने
हमें   टीका   लगा कर     दही पेडा खिलाया
रुपया  नेग दिया औरभाई साहेब कोकलेवा
खिलाने लगी     हम सभी रस्मों का आनंद
ले रहे थे कि  अचानक    मैंने देखा कि वोह
लड़की  चुपचाप   हाथ में सिदूर लेकर मेरी
तरफ   पीछे से बढ़   रही  है  शायद उसका
इरादा मेरी माँग   में सिन्दूर भरने  का  था
वोह   मुझे   ड्रेसिंग टेबल  के शीशे में साफ़
नज़र आ रही थी  मैंने   उसे आने दिया पर
ज्योंही वोह अपनी मुटठी  सिन्दूर के साथ
मेरे सिर पर  लायी पलक झपकते  ही वोह
मेरी  गोद में    आ   गिरी और  उसका हाथ
पकड़ उसी का  सिन्दूर उसी   की   माँग में
भरपूर भरा जा चुका था  सब कुछ   इतनी
जल्दी में घटा कि  कोई   कुछ समझ पाता
हंगामा हो  गया वोह    लड़की किसी प्रकार
उठकर अन्दर भाग गयी मैं आवाक सा था
मण्डप के  नीचे      कुवारी कन्या की माँग
में सिन्दूर डालना कोई साधारण बात नहीं
थी गाँव का माहौल देखते ही देखते सैकड़ों
की संख्या  में गाँव वाले   इक्कठे   हो गये
हमारी तरफ के बड़े बूढ़े भी  शिष्टाचार  की
रसम छोड़ वहां आ   गये गाँववाले कह रहे
थे जब   माँग भर दी   है तो   फेरे करा कर
इनकी  शादी करा  दो  पर  दोनों   पक्ष   के
समझदार   लोग   ये   दोनों   बच्चे     और
नाबालिग हैं  इसके खिलाफ थे खूब  बहस
मुबाहसा   हुआ और   हमारी बारातअगले
दिन बिदाई के बाद वापस रवाना   हो गयी

बाद में हमारी नई भाभीजी ने मुझे  बताया
कि वोह लड़की      उनके चाचा की   लड़की
मीना थी और ग्वालियर शहर में    आठवीं
कक्षा    में    पढ़ती   थी  जहाँ   उसके पिता
सरकारी डाक्टर थे वोह   लड़की उस घटना
 के बाद बहुत उदास हो गयी थी   सदा रोती
रहती थी  मुझे मन  ही मन   उसने पति के
रूप में वरण कर लिया था मण्डप   में माँग
भरा   जाना   एक  ऐसी   घटना थी जिसने
उसके कोमल मन पर   अमिट  छाप छोडी
थी जब जब उसकी भाभीजी से   मुलाकात
होती   वोह   मेरे बारे में ज्यादा   से ज्यादा
जानने  की  कोशिश करती  मैं      कैसा हूँ
कहाँ पढता हूँ  क्या मैं  उसे याद   करता हूँ
अदि अदि  एक  दो बार भाभीजी   ने  मुझे
उसके   द्वारा   लिखे   कुछ   पत्र    भी दिये
जिसमे    उसने   अपना   दिल     निकाल
कर रख दिया  था वोह मुझे पति   मानती
है जिंदगी   भर   साथ    साथ  जीना  और
मरनाचाहती है मैं एक सीधा सादा लड़का
था क्या उत्तर देता पर दिल से  मैं  भी उसे
चाहने लगा था हम बिन फेरे ही एक दूसरे
के हो चुके   थे यद्यपि आज   के ज़माने के
सम्पर्क साधन न होने से हमारे बीच कोई
सम्वाद नहीं था हाँ  भाभीजी   के माध्यम
से हम एक  दूसरे   के बारे   में जानने को
उत्सुक   रहते   थे  पढाई समाप्त  कर   मैं
अच्छीनौकरी  में लग गया   तमाम शादी
के प्रस्ताव आ रहे थे पर मेरे दिलोदिमाग
में मीना ही छायी   थी मुझे वो  ही पत्नी के
रूप में स्वीकार थी  मैंने भाभी जी के द्वारा
सन्देश भी भेजा और उन  लोगों  ने सहर्ष
अपनी  सहमति दी और शीघ्र  हम   सात
फेरों के पवित्र बन्धन में बंध गये

मुझे    बहुत प्रसन्नता है   कि   मुझे मीना
जैसी  जीवन संगिनी  मिली    पर  हम तो
बहुत  पहिले   ही   मन मस्तिष्क से "बिन
फेरे हम तेरे " हो चुके थे

(समाप्त )

 



Wednesday 3 December 2014

कविता : आवारा कुत्ता और मैं

एक        दिन         अचानक        जब ...
गली          में             जाते         जाते ....
आवारा       कुत्ते    ने       काट    खाया ...
मैं      दर्द                से         चिल्लाया ...
दिल       मुँह        मे         हो     आया ....
तमाम     बदन      और       मुँह    पर
पसीना ...छल       छला            आया ....
बहुत          गुस्सा       भी         आया
मैंने    एक बड़ा    सा    पत्थर उठाया ...
कुत्ते पर      दे मारा ...         वोह गिरा .......
दर्द             से                   छटपटाया ...
हाथ .         .पैर                         फेंके ...
और          देखते         ही         देखते ...
ठंडा            हो                           गया ...
कुत्ते           के प्राण       पखेरू उड़ गए  ..
लोंगो         के     मेले            लग गए
लोग                    कभी     कुत्ते      को ..
कभी                  मुझे           देखते  थे ...
कुछ                                          बोले ,,,
बहुत               अच्छा               किया ....
बड़ा       कटखन्ना         कुत्ता        था
हर           किसी      को    बिला वज़ह ..
काटता           फिरता                    था ...
बच्चे              बूढ़े                    जवान ...
सभी              संतृस्त                     थे
उस        कुत्ते के      आगे       पस्त थे ...


किसी        ने      कहा  कि भाई साहब ..
काटा               था           तो        क्या ..
इंजेक्शन               लगवा           लेते ..
पर       जीवहत्या     तो     न    करते
कोई          बोला        भाई        साहब 
आपने           अच्छा      नहीं     किया ..
जीव दया                    वालों           से
 नाहक                    पंगा           लिया ..
वे              आते           ही           होंगे ......
अब      आपकी वो    ही      ख़बर लेंगे ..
अचानक         दिखी     एक        वर्दी ...
पुलिस            का                 सिपाही ..
अरे              भाई    इस   कुत्ते      की ...
दिन                   दहाड़े             हत्या
किसने           कर                    डाली
किसकी            है   शामत      आयी ......
"मेनका जी "     से       ले लिया पंगा ...
अब    शहर      में    हो के रहेगा दंगा ...
लोगों ने     मेरी     ओर इशारा किया ...
सिपाही              ने                   मुझे
एक    किनारे         लिया ....   .बोला
ज़नाब    बवाल    में     फँस जाओगे ...
"सौ रूपये     निकालते         हो ...या
हथकड़ी                    लगवाओगे ..."
मैंने कहा "सौ रुपये        किस लिए"..
बोला             थाने                   चलो ..
सब              समझ             जाओगे ..
दो              दिन         बंद       रहोगे ...
मार            खाओगे .               .तब
सब            जान                 जाओगे ..
अरे भैया " कुत्ते की       हत्या पाप है
कानूनन           जुर्म                    है
उसमे भी        अदालत है जुर्माना है
बोलो जेल         की हवा खाना है ..."


मैं                कुत्ता      काटे         का
 दर्द             भूल         चुका       था .....
मेरा                 प्यास                से
हलक             सूख     चुका       था
मुझे     हवालात            दिखती थी
यमदूत सा     सिपाही   दिखता था
मरता         न       क्या       करता ..
सिपाही      जी        को       पटाया .....
5 0          का         नोट    पकडाया ..
कान         को           हाँथ   लगाया ...
कसम                                 खाया ...
सिपाही        जी      गल्ती हो गयी ..
कुत्ते                   ने    काटा       था
उसे             सलाम            करता ..
पर कुत्ते       को    कभी ना  मारता ..
क्या    करूँ    किस्मत    ख़राब थी
दिल में मेनका जी       की याद थी


क्या   अज़ीब    देश है     अपना भी ..
लोग रोज़   मरते हैं . .मारे  जाते हैं ...
सड़कों पर        पड़ी रहती हैं  .लाशें ...
फोटो खिचतें हैं .. .तफ्शीश होती है....
पर ना ही     फ़िक्र करता है     कोई ...
न जनता न पुलिस    न और  कोई .....
अगर             गल्ती                  से
पकड़ा भी   जाता है    मारने  वाला
अदालत    से       छूट       जाता है


पर           कुत्ते   को       मारने  पर ...
जीव दया     वाले दौड़        पड़ते हैं
लगाते     हैं         तमाम   तोहमत
 मारने             वाले                 पर
जबकि      इन्सान को    मारने पर
चर्चा              नहीं                 होती
जीवदया             वालों             को
कोई                फ़िक्र      नहीं होती
काश ...इंसान               को       भी
सही                  जाना          जाता
कम            से     कम     कुत्ते    से     
तो         बेहतर ....माना        जाता
कम            से      कम     कुत्ते    से
तो             बेहतर      माना   जाता
कम           से    कम           कुत्ते से
तो          बेहतर      माना      जाता

(समाप्त)

विशेष नोट :
आवारा कुत्तों की संख्या     रोक टोक के  अभाव
में बेहिसाब  बढ़ रही है और ये  वरिष्ट नागरिकों
बच्चों समेत सभी लोगों के लिए   खतरा  बनते
जा रहें है    इनके काटने  से लोग घायल     और
असमय मौत के मुंह में जा रहे हैं उचित  इलाज
न मिलने से गरीब लोग   इनका ज्यादा  शिकार
होते है  इनका कोई मालिक न होने से शिकायत
और हर्जाना का भी कोई प्रावधान  नहीं  है  उधर
सरकार इनकी   जनसँख्या कम करने के  लिए
कोई प्रभावी कदम   नहीं उठा   पा रही है   अतः
आवश्यकता इस बात की है  कि इस  विषय में
इनकी निरुपयोगिता  और खतरे को देखते हुए
कुछ प्रभावी कदम उठाये जाएँ   जिससे जनता
को इनसे निजात मिले 

कविता - मुझे

मुझे  नहीं     अच्छे   लगते  हैं .......
सूखे  पेंड .....    गिरे  हुए   पत्ते ...
टूटे    हुए                        काँच ..............
रुकी   हुई                        घडी ....
बीमार                            लोग
जलती                        चिताएँ ......
मार                  -            काट ............
क्योंकि                              ये  
जीवन              के     विपरीत ..........
जीवन              के          उलट
स्थितियाँ                           हैं


हरे      भरे ....     ..फलदार पेंड .......
प्यारी    सुहानी             हवाएँ
कांचों   से         सजी बिल्डिंगें ....
चलती      और        समय का
पता           देती              घडी
स्वस्थ                           लोग ....
जीवन               से     सराबोर ...
सब                              तरफ
भाई  चारा ...                   प्रेम ..........
मुझे                              बहुत 
तहसल्ली            देते          हैं ....
उस                ईश्वर           पर 
विश्वास             करने       को
दिल          होता                  है
जिनके                सृजन     ने
 इन्हें                      रचा      है


काश                   सब     कोई 
जीवित            रहते     सदैव ......
हँसते       बोलते      बतियाते ...
.तो .                           जीवन ...
कितना          अच्छा      होता ..
मुझे                भाता        और 
 स्वर्ग          सरीखा        होता .
 (समाप्त)..

Monday 1 December 2014

तेरा अभीष्ट प्राप्त होगा

मरना ..जीना महज़ एक संयोग है
हँसना ..रोना .महज़ एक संयोग है
प्रेम ..मोहब्बत भी महज़ एक संयोग है
तुमसे मुखातिब होना भी एक संयोग है

 तुम     इस संयोग को मुक्कदर मानो या किस्मत
इसे भाग्य मानो या luck
तुम्हारा इसमें क्या योगदान है ....?
हाँ ईश्वर बहुत महान है ....!
वो देता है बिना मांगे ...
पूरी करता है सबकी इच्छाएँ ...
तामीर करता है सबके ख्वाब ....
पर कभी सुना है ......
कि God help those...
who helps themselves
अर्थात मुख खोले शेर के मुख में ...
शिकार स्वयं नहीं कूद पड़ता ...
शेर को भी शिकार पाने  हेतु ..
प्रयास रत होना पड़ता है ..
और तुम पाना चाहते हो ...
सबकुछ  कर्म के बिना ...
मुख खोले  शेर के समान ...
ऐसा हिर्गिज़ नहीं होगा ..
तुम्हें प्रयास ही नहीं.....
 भरपूर  प्रयास करना होगा
भागना दौड़ना और  श्रम करना होगा ..
क्योंकि कर्त्तव्य की गरिमा से ही ..
भरे पड़े हैं तमाम धर्म शास्त्र ..
अगर  दुनिया में यदि ..
कुछ पाने की इच्छा है…
तो प्रयास करो ..
प्रयास  करो .......
जी तोड़ मेहनत करो
फिर सभी संयोग भी  संभव  होंगें ..
इश्वेर भी कृपा करेगा ...
और हे मानव तुझे तेरा ..
अभिष्ठ  प्राप्त होगा
 अभिष्ठ  प्राप्त होगा
अभिष्ठ  प्राप्त होगा



(समाप्त )