काँटे ने उठाया बोला..
"कौन साहब बोल रहे हैं "
मैंने फोन काटा थोड़ी देर बाद
फिर फोन लगाया कली ने उठाया
" आप कौन..क्या काम है..?? "
मैंने फोन काटा थोड़ी देर बाद
फिर लगाया और देखो भाग्य मुस्कुराया
इस बार फोन फूल ने उठाया
बोला... " अरे आपको इतने दिनों बाद
हमारी याद तो आयी तुम हो हरजाई..
जाइये हम आपसे नहीं बोलते ..
अपने दिल के पर्दे आपके लिये नहीं खोलते "
मैं बोला " भागवान ऐसी बातें
फोन पर थोड़े ही करते हैं "
" फिर कैसे करते हैं " फूल बोला
मैं बोला " आमने सामने बैठ ..
हाथों में हाथों को पकड़ ..आँखों मे अँखियाँ डाल कर ही तो ऐसी बातें करते हैं "
" तो फिर घर में आओ न ..और मुझे ठीक से समझाओ न " फूल बोला
मैं बोला " ठीक है फिर आता हूँ ..तुम्हें ठीक से समझाता हूँ " पर समय और दिन तो तुम ही बताओगी और देखो फोन भी तुम ही लगाओगी "
अचानक फोन बीच ही में कट गया
वो साला काँटा बीच मे ही आ गया
अच्छे खाँसे मूड का गुड़ गोबर कर गया
काश भगवान ये काँटे तो न बनाता
तो हमारे जैसे जीवों का गुज़ारा
इस धरती पर सुख चैन से हो जाता
(स्वरचित)
अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव