अचानक आँख खुल गयी मै गर्मी
और पसीने से बुरी तरह नहाया
हुवा था देखा ए सी और पंखा दोनों
बदस्तूर चल रहें है पर इतनी गर्मी
और पसीना क्यों शायद कोई बुरा
सपना देखा था घडी पर नज़र पड़ी
सुबह के 3-35 बज रहे थे सोंच
प्रारंभ हुयी क्या देखा सपने में..?.
मैंने देखा एक विशाल स्त्र्री आकृति
हाल बेहाल बिखरे बाल सूखे होंठ
फटे कपडे पर वो साधारण स्त्र्री नहीं
लग रही थी मैं उसके आगे बंदना
में झुकने लगा और उससे अभय
की प्रार्थना करने ही वाला था कि
उसकी स्पष्ट किन्तु धीमी रूवांसी
आवाज सुनाई पड़ी अरे नहीं नहीं
आप नहीं झुकें और अभय माँगे
मैं ही आपके सम्मान में झुकती
हूँ और आपसे अभय माँगती हूँ
मैं आश्चर्य में पड़ गया और हाथ
जोड़कर बोला पहिले आप मुझे
अपना परिचय दें फिर अपना
प्रयोजन बतलाएं मैं 70 साल का
बृद्ध आपकी क्या सेवा कर सकता
हूँ अभय तो बहुत दूर की बात है
फिर मेरी हैसियत ही क्या है
वो बोलीं आप मुझे अच्छी तरह
जानते हो मैं आपकी धरती माँ
हूँ मैं चौंका औरबोला माँ आपका
कोटि कोटि नमन परआपकी ये
हालत किसने बनाई वोह बोलीं
उसीने जो मेरा बेटा होने का दम
भरता है पर सारे कष्ट भी वो ही
देता है वोह पहाड़ियाँ खोद
डालता है जँगल उजड़ता है
नदियों के पानी के बहाव
को तोडमोड़ वोह आखिर उन्हें
सुखा और बर्बाद कर डालता है
बांध बनाकर वोह पानी जमा
करता है जो अक्सर बाढ़
और बदहाली ही लाता है
नदियों के सूखने से उनकी
धारा के बीच रास्ते पर
बस्तियाँ बना लेता है यही
बस्तियाँ जब कभी नदी में
ज्यादा पानी आता है या
बाँधों से छोड़ा जाता है बह
जाती है और जान माल का
भारी नुकसान होता है नदियों
में रसायन कूड़ा करकट डाल
उसका पानी दूषित कर देता है
जमीन में रासायनिक खाद
डाल डाल के उसकी स्वाभाविक
उत्पादन छमता खत्मकर दे
रहा है उसने हवा को भी नहीं
बक्शा रोज भरपूर दूषित गैसें
उसमे मिला रहा है दुःख इस
बात का है यह सब वो कर
रहा जो अपने को मेरा बेटा
कहलाता है मुझे माँ का कष्ट
समझ आ गया था और मैं
उसे कष्ट मुक्त भी देखना
चाहता था पर मैंने अपनी
शंका माँ के सामने रखी
माँ आपके करोडो अरबों
पुत्र पुत्रियाँ हैं फिर मुझ
अकिंचन बृद्ध को आपने
किस प्रयोजन से अपनी
सहायता के लिये चुना
और आपको बिश्वास है
कि मैं अवश्य ये कार्य करूंगा
माँ मुस्करायी और बोली सही
गलत अच्छा बुरा मैं भी जानती
हूँ पर इतना जरूर जानती हूँ कि
तुम मेरे सच्चे भक्त और पुजारी
हो इसलिये अवश्य ही अपना
भरपूर प्रयास करोगे और लेखक
होने से इस विषय पर लिखकर
जागरूकता फैलाओगे मैंने पूरी
श्रद्धा और भक्ति से दोनों हाथ जोड़े
और शीश धरती पर टिकाया मैंने
धरती का प्यार भरा स्पर्श अपने
सर पर महसूस किया मैंने सर
उठाके देखा वोह भव्य आकृति जा
चुकी थी और वातावरण में भीनी
भीनी धरती की सुगंध तैर रही थी
(समाप्त)
अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव