Wednesday 31 December 2014

स्वागत नव वर्ष का

आओ    करें   स्वागत      नव      वर्ष का
बने     यह          कारण   सबके   हर्ष  का
सब         तरफ              तमाम           हो
खुशियाँ …     और                   हरियाली
सबकी    बरक्कत     और   हो खुशहाली
सबकी       उम्मीदें     आशाएं  हों      पूरी
न    रहे किसी   की कोई  इच्छा     अधूरी
अपनी     कृपा के साथ  इश्वर का हाँथ हो
देश      के        विकास ……..     …और
अग्रसर होने    में   हमारा      भी हाथ हों
अपनी जिम्मेदारियों  सेहम  न  मुंह मोड़ें
अपने देश के साथ अपनी   किस्मत जोड़ें
देश है तो हम हैं देश नहीं तो हम भी नहीं
हमारे      लिए देश के सिवा कुछ भी नहीं
इसके लिए       सर्वस्व हमारा   है कुर्बान
देश है        मेरा दिल                और जान
प्रार्थना है किइस देश से अज्ञान अशिक्षा
बेराजगारी भ्रष्टाचार मिट जाये  और देश
के नागरिक देशभक्त जिम्मेदार बन जाएँ
नव वर्ष     सभी देश वासियों को शुभ हो
शुभ हो          शुभ हो                   शुभ हो
आमीन             आमीन            आमीन

Thursday 4 December 2014

कहानी : बिन फेरे हम तेरे

बात तब की है जब शादी व्याहों  में बारातें
होती थी  यानी   वोह एक दिन  वाली  नहीं
जैसी आजकल होती  है      बाकायदा ३-४
दिन की होती  थीं  द्वारचार  शादी    कच्चा
खाना या भात     कुँवर  कलेवा   शिष्टाचार
और तीसरे   दिन बिदाई,  बारात   में नाते
रिश्तेदार दोस्त नौकर चाकर मोहल्लेवाले
मिलाकर   150 से 250   तक लोग होते थे
बारात बसों   से   सड़कों तक   फिर    बैल
गाड़ियों या अध्धों पर गाती बजाती चलती
थी बड़ा मजा आता था


हाँ तो जब मैं नवी  कक्षा में  पढता था और
देखने   सुनने में अच्छा  खासा  दिखता था
कसरती खिलाड़ी बदन और आकर्षक मुझे
मेरे ममेरे भाई क़ी  शादी में बारात में जाने
का अवसर मिला पक्की सड़क से   कोई 5
किलोमीटरअंदर नदी किनारे वोह गाँव था
हमें वहाँ के स्कूल  में जनवासा दिया गया
पहुचने पर  भव्य स्वागत हुवा   एक तरफ
माँसाहारीऔर दूसरी तरफशाकाहारी  घड़ों
में भर कर देशी शराब का  भी इंतजाम था
जिसका बारातियों ने भरपूर मज़ा लिया


रात 10 बजे बारात   द्वारचार हेतु  वधु पक्ष
के  दरवाजे बाजे गाजे के साथनाचते  गाते
पहुची वहाँ भी भव्य स्वागत हुआ पूरा गाँव
स्वागत में लगा था  द्वारचार ,शादी  अगली
दोपहर कच्चा भात  ठीक  ठाक निपट गये
सब अच्छा चल   रहा था मैंने एक बात को
नोटिस    किया वधु पक्ष की एक  बड़ी बड़ी
आखों  वाली सुंदर कन्या   मेरी तरफ कुछ
ज्यदा ही आकर्षित हो रही थी कुछ न कुछ
हरकत  के साथ सामने आ जाती  पर मैंने
ज्यादा ध्यान नहीं दिया



फिर शाम   को   कुँवर कलेवा  हेतु  बुलावा
आया और हमारे दूल्हे भाई साहेब  के साथ
हम  5 सह्बेले लोग भी साथ गये  हमेंशादी
के  मंडप  के   नीचे बिठाया  गया   वहीँ पर
दहेज़ का घरेलू सामान भी  सजा था पलँग
एल्मारी ड्रेसिंग टेबल सोफा रेडियो बिजली
का पंखा सभी  कुछ    मैं  सोफे पर बैठा था
सामने ही  ड्रेसिंग टेबल थी   उसके शीशे में
मुझे अपने पीछे का नज़ारा साफ़ दिख रहा
था वोह लड़कीकई अन्य लड़कियों के साथ
शरारतों में लगी  थी हसीं  मजाक  का  दौर
चल रहा थाभैया की सास जी आयीं उन्होंने
हमें   टीका   लगा कर     दही पेडा खिलाया
रुपया  नेग दिया औरभाई साहेब कोकलेवा
खिलाने लगी     हम सभी रस्मों का आनंद
ले रहे थे कि  अचानक    मैंने देखा कि वोह
लड़की  चुपचाप   हाथ में सिदूर लेकर मेरी
तरफ   पीछे से बढ़   रही  है  शायद उसका
इरादा मेरी माँग   में सिन्दूर भरने  का  था
वोह   मुझे   ड्रेसिंग टेबल  के शीशे में साफ़
नज़र आ रही थी  मैंने   उसे आने दिया पर
ज्योंही वोह अपनी मुटठी  सिन्दूर के साथ
मेरे सिर पर  लायी पलक झपकते  ही वोह
मेरी  गोद में    आ   गिरी और  उसका हाथ
पकड़ उसी का  सिन्दूर उसी   की   माँग में
भरपूर भरा जा चुका था  सब कुछ   इतनी
जल्दी में घटा कि  कोई   कुछ समझ पाता
हंगामा हो  गया वोह    लड़की किसी प्रकार
उठकर अन्दर भाग गयी मैं आवाक सा था
मण्डप के  नीचे      कुवारी कन्या की माँग
में सिन्दूर डालना कोई साधारण बात नहीं
थी गाँव का माहौल देखते ही देखते सैकड़ों
की संख्या  में गाँव वाले   इक्कठे   हो गये
हमारी तरफ के बड़े बूढ़े भी  शिष्टाचार  की
रसम छोड़ वहां आ   गये गाँववाले कह रहे
थे जब   माँग भर दी   है तो   फेरे करा कर
इनकी  शादी करा  दो  पर  दोनों   पक्ष   के
समझदार   लोग   ये   दोनों   बच्चे     और
नाबालिग हैं  इसके खिलाफ थे खूब  बहस
मुबाहसा   हुआ और   हमारी बारातअगले
दिन बिदाई के बाद वापस रवाना   हो गयी

बाद में हमारी नई भाभीजी ने मुझे  बताया
कि वोह लड़की      उनके चाचा की   लड़की
मीना थी और ग्वालियर शहर में    आठवीं
कक्षा    में    पढ़ती   थी  जहाँ   उसके पिता
सरकारी डाक्टर थे वोह   लड़की उस घटना
 के बाद बहुत उदास हो गयी थी   सदा रोती
रहती थी  मुझे मन  ही मन   उसने पति के
रूप में वरण कर लिया था मण्डप   में माँग
भरा   जाना   एक  ऐसी   घटना थी जिसने
उसके कोमल मन पर   अमिट  छाप छोडी
थी जब जब उसकी भाभीजी से   मुलाकात
होती   वोह   मेरे बारे में ज्यादा   से ज्यादा
जानने  की  कोशिश करती  मैं      कैसा हूँ
कहाँ पढता हूँ  क्या मैं  उसे याद   करता हूँ
अदि अदि  एक  दो बार भाभीजी   ने  मुझे
उसके   द्वारा   लिखे   कुछ   पत्र    भी दिये
जिसमे    उसने   अपना   दिल     निकाल
कर रख दिया  था वोह मुझे पति   मानती
है जिंदगी   भर   साथ    साथ  जीना  और
मरनाचाहती है मैं एक सीधा सादा लड़का
था क्या उत्तर देता पर दिल से  मैं  भी उसे
चाहने लगा था हम बिन फेरे ही एक दूसरे
के हो चुके   थे यद्यपि आज   के ज़माने के
सम्पर्क साधन न होने से हमारे बीच कोई
सम्वाद नहीं था हाँ  भाभीजी   के माध्यम
से हम एक  दूसरे   के बारे   में जानने को
उत्सुक   रहते   थे  पढाई समाप्त  कर   मैं
अच्छीनौकरी  में लग गया   तमाम शादी
के प्रस्ताव आ रहे थे पर मेरे दिलोदिमाग
में मीना ही छायी   थी मुझे वो  ही पत्नी के
रूप में स्वीकार थी  मैंने भाभी जी के द्वारा
सन्देश भी भेजा और उन  लोगों  ने सहर्ष
अपनी  सहमति दी और शीघ्र  हम   सात
फेरों के पवित्र बन्धन में बंध गये

मुझे    बहुत प्रसन्नता है   कि   मुझे मीना
जैसी  जीवन संगिनी  मिली    पर  हम तो
बहुत  पहिले   ही   मन मस्तिष्क से "बिन
फेरे हम तेरे " हो चुके थे

(समाप्त )

 



Wednesday 3 December 2014

कविता : आवारा कुत्ता और मैं

एक        दिन         अचानक        जब ...
गली          में             जाते         जाते ....
आवारा       कुत्ते    ने       काट    खाया ...
मैं      दर्द                से         चिल्लाया ...
दिल       मुँह        मे         हो     आया ....
तमाम     बदन      और       मुँह    पर
पसीना ...छल       छला            आया ....
बहुत          गुस्सा       भी         आया
मैंने    एक बड़ा    सा    पत्थर उठाया ...
कुत्ते पर      दे मारा ...         वोह गिरा .......
दर्द             से                   छटपटाया ...
हाथ .         .पैर                         फेंके ...
और          देखते         ही         देखते ...
ठंडा            हो                           गया ...
कुत्ते           के प्राण       पखेरू उड़ गए  ..
लोंगो         के     मेले            लग गए
लोग                    कभी     कुत्ते      को ..
कभी                  मुझे           देखते  थे ...
कुछ                                          बोले ,,,
बहुत               अच्छा               किया ....
बड़ा       कटखन्ना         कुत्ता        था
हर           किसी      को    बिला वज़ह ..
काटता           फिरता                    था ...
बच्चे              बूढ़े                    जवान ...
सभी              संतृस्त                     थे
उस        कुत्ते के      आगे       पस्त थे ...


किसी        ने      कहा  कि भाई साहब ..
काटा               था           तो        क्या ..
इंजेक्शन               लगवा           लेते ..
पर       जीवहत्या     तो     न    करते
कोई          बोला        भाई        साहब 
आपने           अच्छा      नहीं     किया ..
जीव दया                    वालों           से
 नाहक                    पंगा           लिया ..
वे              आते           ही           होंगे ......
अब      आपकी वो    ही      ख़बर लेंगे ..
अचानक         दिखी     एक        वर्दी ...
पुलिस            का                 सिपाही ..
अरे              भाई    इस   कुत्ते      की ...
दिन                   दहाड़े             हत्या
किसने           कर                    डाली
किसकी            है   शामत      आयी ......
"मेनका जी "     से       ले लिया पंगा ...
अब    शहर      में    हो के रहेगा दंगा ...
लोगों ने     मेरी     ओर इशारा किया ...
सिपाही              ने                   मुझे
एक    किनारे         लिया ....   .बोला
ज़नाब    बवाल    में     फँस जाओगे ...
"सौ रूपये     निकालते         हो ...या
हथकड़ी                    लगवाओगे ..."
मैंने कहा "सौ रुपये        किस लिए"..
बोला             थाने                   चलो ..
सब              समझ             जाओगे ..
दो              दिन         बंद       रहोगे ...
मार            खाओगे .               .तब
सब            जान                 जाओगे ..
अरे भैया " कुत्ते की       हत्या पाप है
कानूनन           जुर्म                    है
उसमे भी        अदालत है जुर्माना है
बोलो जेल         की हवा खाना है ..."


मैं                कुत्ता      काटे         का
 दर्द             भूल         चुका       था .....
मेरा                 प्यास                से
हलक             सूख     चुका       था
मुझे     हवालात            दिखती थी
यमदूत सा     सिपाही   दिखता था
मरता         न       क्या       करता ..
सिपाही      जी        को       पटाया .....
5 0          का         नोट    पकडाया ..
कान         को           हाँथ   लगाया ...
कसम                                 खाया ...
सिपाही        जी      गल्ती हो गयी ..
कुत्ते                   ने    काटा       था
उसे             सलाम            करता ..
पर कुत्ते       को    कभी ना  मारता ..
क्या    करूँ    किस्मत    ख़राब थी
दिल में मेनका जी       की याद थी


क्या   अज़ीब    देश है     अपना भी ..
लोग रोज़   मरते हैं . .मारे  जाते हैं ...
सड़कों पर        पड़ी रहती हैं  .लाशें ...
फोटो खिचतें हैं .. .तफ्शीश होती है....
पर ना ही     फ़िक्र करता है     कोई ...
न जनता न पुलिस    न और  कोई .....
अगर             गल्ती                  से
पकड़ा भी   जाता है    मारने  वाला
अदालत    से       छूट       जाता है


पर           कुत्ते   को       मारने  पर ...
जीव दया     वाले दौड़        पड़ते हैं
लगाते     हैं         तमाम   तोहमत
 मारने             वाले                 पर
जबकि      इन्सान को    मारने पर
चर्चा              नहीं                 होती
जीवदया             वालों             को
कोई                फ़िक्र      नहीं होती
काश ...इंसान               को       भी
सही                  जाना          जाता
कम            से     कम     कुत्ते    से     
तो         बेहतर ....माना        जाता
कम            से      कम     कुत्ते    से
तो             बेहतर      माना   जाता
कम           से    कम           कुत्ते से
तो          बेहतर      माना      जाता

(समाप्त)

विशेष नोट :
आवारा कुत्तों की संख्या     रोक टोक के  अभाव
में बेहिसाब  बढ़ रही है और ये  वरिष्ट नागरिकों
बच्चों समेत सभी लोगों के लिए   खतरा  बनते
जा रहें है    इनके काटने  से लोग घायल     और
असमय मौत के मुंह में जा रहे हैं उचित  इलाज
न मिलने से गरीब लोग   इनका ज्यादा  शिकार
होते है  इनका कोई मालिक न होने से शिकायत
और हर्जाना का भी कोई प्रावधान  नहीं  है  उधर
सरकार इनकी   जनसँख्या कम करने के  लिए
कोई प्रभावी कदम   नहीं उठा   पा रही है   अतः
आवश्यकता इस बात की है  कि इस  विषय में
इनकी निरुपयोगिता  और खतरे को देखते हुए
कुछ प्रभावी कदम उठाये जाएँ   जिससे जनता
को इनसे निजात मिले 

कविता - मुझे

मुझे  नहीं     अच्छे   लगते  हैं .......
सूखे  पेंड .....    गिरे  हुए   पत्ते ...
टूटे    हुए                        काँच ..............
रुकी   हुई                        घडी ....
बीमार                            लोग
जलती                        चिताएँ ......
मार                  -            काट ............
क्योंकि                              ये  
जीवन              के     विपरीत ..........
जीवन              के          उलट
स्थितियाँ                           हैं


हरे      भरे ....     ..फलदार पेंड .......
प्यारी    सुहानी             हवाएँ
कांचों   से         सजी बिल्डिंगें ....
चलती      और        समय का
पता           देती              घडी
स्वस्थ                           लोग ....
जीवन               से     सराबोर ...
सब                              तरफ
भाई  चारा ...                   प्रेम ..........
मुझे                              बहुत 
तहसल्ली            देते          हैं ....
उस                ईश्वर           पर 
विश्वास             करने       को
दिल          होता                  है
जिनके                सृजन     ने
 इन्हें                      रचा      है


काश                   सब     कोई 
जीवित            रहते     सदैव ......
हँसते       बोलते      बतियाते ...
.तो .                           जीवन ...
कितना          अच्छा      होता ..
मुझे                भाता        और 
 स्वर्ग          सरीखा        होता .
 (समाप्त)..

Monday 1 December 2014

तेरा अभीष्ट प्राप्त होगा

मरना ..जीना महज़ एक संयोग है
हँसना ..रोना .महज़ एक संयोग है
प्रेम ..मोहब्बत भी महज़ एक संयोग है
तुमसे मुखातिब होना भी एक संयोग है

 तुम     इस संयोग को मुक्कदर मानो या किस्मत
इसे भाग्य मानो या luck
तुम्हारा इसमें क्या योगदान है ....?
हाँ ईश्वर बहुत महान है ....!
वो देता है बिना मांगे ...
पूरी करता है सबकी इच्छाएँ ...
तामीर करता है सबके ख्वाब ....
पर कभी सुना है ......
कि God help those...
who helps themselves
अर्थात मुख खोले शेर के मुख में ...
शिकार स्वयं नहीं कूद पड़ता ...
शेर को भी शिकार पाने  हेतु ..
प्रयास रत होना पड़ता है ..
और तुम पाना चाहते हो ...
सबकुछ  कर्म के बिना ...
मुख खोले  शेर के समान ...
ऐसा हिर्गिज़ नहीं होगा ..
तुम्हें प्रयास ही नहीं.....
 भरपूर  प्रयास करना होगा
भागना दौड़ना और  श्रम करना होगा ..
क्योंकि कर्त्तव्य की गरिमा से ही ..
भरे पड़े हैं तमाम धर्म शास्त्र ..
अगर  दुनिया में यदि ..
कुछ पाने की इच्छा है…
तो प्रयास करो ..
प्रयास  करो .......
जी तोड़ मेहनत करो
फिर सभी संयोग भी  संभव  होंगें ..
इश्वेर भी कृपा करेगा ...
और हे मानव तुझे तेरा ..
अभिष्ठ  प्राप्त होगा
 अभिष्ठ  प्राप्त होगा
अभिष्ठ  प्राप्त होगा



(समाप्त )

Sunday 30 November 2014

कविता :-शब्द महिमा

शब्द यदि क्रम से बोला जाय ....
तो मंत्र है ........
शब्द यदि कड़ वाहट  से बोला जाये ...
तो मारक यन्त्र है
शब्द  नरमी से बोला जाये तो
पिघलते हैं दिल ...
शब्द शर्मा के बोला जाये तो
मिलतें हैं दिल ......
शब्द की मार अति भयंकर है ...
शब्द की धार अति भयंकर है ...
काटते हैं शीश तलवार की धार बन…
जब यही शब्द ...
न्यायाधीशों की कलम से निकलतें हें
शब्द का प्रयोग जिसने जान लिया
मानो सारी दुनिया को पहिचान लिया ..

शब्द दिलाएंगे आपको आदर ..स्नेह
शब्द सरस हैं तो बरसेगा नेह
शब्द की महिमा को अतः पहिचानना होगा ..
शब्द क्या हैं ये जानना होगा
शब्द की गाडी पर सवार मीठी वानी
करती है बड़ी बड़ी आगों को पानी ..
शब्द की खेती को अतः लहलहाते रखिये
शब्द का उचित प्रयोग सदा करते रहिये
शब्द फिर दिलायेंगे आपको आदर ..
शब्द फिर आपके साथ को निभाएंगे
शब्द को यदि आपने अपना लिया
शब्द आपको अपना बनायेंगे
अतः लाजिम है कि शब्द का प्रयोग ....
संभल के करो ..
शब्द जो कोष से तुम्हारे निकलें वे अच्छे हों ..
गुदगुदाएँ दूसरों के मन ..आपको भी हर्षित करें
शब्द के इस अंबार में अच्छे शब्दों का संग्रह करे
अच्छे शब्द संग्रह करें ..
अच्छे शब्द संग्रह करें ....
और उचित समय पर उचित शब्द का ..
प्रयोग करें ..........
औरों को हर्षित करें ....
स्वयं भी हर्षित रहें




(समाप्त )

कविता : मरता हुआ निरीह

खड़ा था ..सवारी की आस में .....
तांगा पंहुचा पास ...में ...
घोडा थका ...थका ...सा ...
तांगा ..रुका ...रुका ...सा ..
लाचारी .....बेचारी   थी ...
बोझ ....और ...बेजारी  थी ...
लगातार ...पीटता ...मालिक  था
गर्मी थी ट्राफिक ..था ..सिपाही  था ..


घोड़े से… .....आँख मिली .....
ममता .......हृदय  मे  बही ...
आँखों में (घोड़े की )..सूनापन था ..
घोडा   क्यूँ  बना ...इसका ..गम था ..
प्यास से गला सूखा था ...
पेट ....बहुत  भूखा   था ...


मालिक  की ....चाबुक थी ..
बेतहाशा .....पड़ती मार थी ...
घोडा हिनहिनाया ....
रुका .....लहराया ......
गिरा जमीन पर बेदम ...
निकल  गया ...उसका दम ...


और अब ....रो रहा है ताँगेवाला ..
उसे अपने परिवार .....
और उसकी रोटी की पड़ी थी ...
मेरे सामने घोड़े की लाश पड़ी थी ....
मेरे मन में बेजुबान जानवर के प्रति ...
ममता उमड़ी थी ...श्रध्दा उमड़ी थी ..
पर ....पर ..घोड़ेवाले के प्रति भी ...
नफ़रत नहीं थी ...नफ़रत नहीं थी ..


कहीं ...न ...कहीं उसकी
 बेचारगी का एह्सास  था ..
कल से बेचारा क्या खायेगा ...
इस   ..सोंच  का भास था ..


इतने में ...मेरा  वाहन  आ गया
और मैं चढ़ कर अपनी
 मंज़िल पर .....आ गया ..
घोड़े की लाश ....और ...
रोते तांगेवाले  से .दूर आ गया ...


पर ....न भुला सका  मैं ....वो मंज़र ...
आज भी दिल पर चलतें हैं  खंज़र ...
कब ..हम जानवरों को न्याय दे पायेंगे ..
कब ..हम  उन्हें प्यार करना ..सीख  पायेंगे ..


कब न तोड़ेगा कोई घोडा ...
इस तरह   से    दम .......
कब इस पर ...विचार करेंगें हम ....
कब हम दया भाव से जीना ...सीखेंगे ..
कब हम ईश्वरीय सन्देश समझेंगे ...
कब हम उन पर आचरण करेंगे ...


ये  सब विचार की बात है ...
वर्ना ....घोड़े यूँ ही  ...मरते  रहेंगें ...
और ...तांगेवाले  ...रोते रहेंगें
बस ....रोते रहेंगें .....




(समाप्त)   सभी जीवधारी ईश्वर की रचना हैं उनकी देखभाल
 तथा सेवा इश्वेर की सेवा है और हमारा कर्त्तव्य भी ........

Saturday 29 November 2014

कविता :-मोर्चाबंदी

इधर भी तैनात सैनिक टैंक ...               उधर भी तैनात सैनिक टैंक 
बंदूकें ....तोपें                                    बंदूकें .....तोपें  
मिसाइलें ........परमाणु  बम                 मिसाइलें ...परमाणु बम


इधर भी तेवर तीखे  तेज                       उधर भी तेवर  तीखे तेज ....
इधर जोश मारो मारो                             उधर भी जोश मारो मारो
इधर धडकते दिल ..                              उधर भी धडकते दिल
आशंका से खौफ से                                आशंका से खौफ से
                             
 
इधर ममता का आँसू भरा                        उधर ममता का आँसू भरा ...
आँचल .......                                        आँचल
इधर सिसकता यौवन ...                          उधर भी सिसकता यौवन ....
 इधर भी बालसुलभ चंचलता                     उधर भी बाल सुलभ चंचलता
इधर शक्ल सूरतों से सभी एक                    उधर भी शक्ल सूरतों से सभी एक
इधर भी बहादुर वफादार देशभक्त                  उधर भी बहादुर वफादार देशभक्त


                     एक ही लहू .............एक ही विरासत
                     एक ही पूर्वज ...........एक ही धरती ....
                     एक ही हवा ..............एक ही पानी ....
                      एक ही जलवायु ........एक ही प्राणवायु ......
                             एक दूसरे   के खून के प्यासे ....

                     मैं सोंचता हूँ  कि ..................
                      इन दो बिल्लियों के  बीच
                      काश्मीर की रोटी किसने थमाई ..
                       और अब तराज़ू लेकर बंदरबांट ....
                       कर रहा है ....
                        जितनी ज्यादा हुईं स्वयं  गटक रहा है
                       इसी सब में कहीं सारी कि सारी रोटी .....
                       बंदर स्वयं न गटक (खा ) जाये
                       

                       फिर यहाँ तो कई बन्दर हैं
                       वोह यूनियन जैक वाला ....
                        जो अपनी हार और यहाँ से विदाई ....
                        भूल नहीं पाया है ....
                         या वोह जो दुनिया का एकमात्र दादा है ...
                         और अगर हिंदुस्तान पाकिस्तान एक हो गये ...
                          तो  हमारी गद्दी को बड़ा खतरा है ..
                          ऐसा सोंचने वाला अमेरिका ..


                         ये मोर्चाबंदी करानेवाला कौन है     .?..
                          भड़काने वाला कौन  है ......?
                          जरूरत है कि हम समझें ...
                          कि हमें लड़ाया जा रहा है ......
                           हम  लडाये जा रहें हैं .... 
                          और हम लड़ भी रहें है .....
                           बिल्लियों के मानिंद ....
                           गुर्राते ....गरज़ते ....
                           तेवर बदलते ......
                           मोर्चाबंदी  के  साथ ....
     
                         


(समाप्त

Friday 28 November 2014

कविता : ऐसे ही

ऐसे                                                     ही
मैंने              फ़ोन       लगाया    फूल   को
कली         ने             उठा                लिया
बोली       क्या      चाहिये        अंकल   जी
मैंने                   फोन                      काटा
दुबारा       फ़ोन    लगाया   फूल    को   तो
कांटे               ने        उठा               लिया
बोला        कौन   साहब     बोल      रहे   हैं

मैंने               फिर      फ़ोन             काटा
एक       बार     और   भाग्य      अजमाया
फ़ोन         फिर           फूल    को  लगाया
और         देखो       भाग्य        मुस्कराया
फूल    ने          खुद      फ़ोन         उठाया
बोली                       हमारे      अहोभाग्य
आपने     याद              तो         फ़रमाया
इतने          दिन          के                 बाद
हमारा           ख्याल       तो           आया
जाओ    हम      आप   से    नहीं   बोलते
अपने      दिल    की     तमाम        परतें
आपके        सामने      नहीं         खोलते
बस इतना ही    प्यार    करते हो      हमें
कितना तरसाते     तडपाते     हो     हमें
याद            भी               है              हम
पिछली           बार    कब      मिले     थे
और           मिलकर       जीवन        की
मधुर      चाशनी    का  रस    पिये      थे
तुम             तो        हरजाई              हो
भूल                    गए                      हमें
और     हम       तुमसे  जोड़   कर    मन
सच्चा        प्यार           कर             बैठे
मैंने      कहा       पगली   फ़ोन          पर
ऐसी       बातें         नहीं                करते
दिल     की  बातें     केवल    आपस    मे
आँखों          से             आँखे          जोड़
हाथों       से        हाथों        को     जकड
एकांत             में      ही      करते       है
वो       बोली               तो               फिर
ठीक           से           समझाओ         न
अरे                  मौका              निकाल
मिलने              आ      जाओ           न
मैंने        कहा       हाँ    ये     हुई    बात
फिर               मैं       आता               हूँ
तुम को     ठीक      से    समझाता     हूँ
पर    बताओ   लाइन कब   किलियर है
यह       तो     तुम     ही        बताओगी
और        फ़ोन          भी    अगली   बार
तुम              ही                    लगाओगी
अचानक          फ़ोन      कट         गया
वो                साला                      कांटा
अचानक          वहाँ          आ       गया
हमारे   दिलों    की डोर  झटके से   तोड़
हमारे              प्यार की             नैय्या  
मज़धार                में                    डुबो
हमारे          दिलों            में             वो
नश्तर       की     तरह          चुभ  गया
सब       गुड      गोबर            कर  गया
काश          भगवान     कांटे    न बनाता
तो उसका      क्या            बिगड़   जाता
और हम जैसों का जीवन धन्य हो जाता

(समाप्त )

कविता : दंगे के सन्दर्भ में

यह      मत    पूँछो    कि   कौन मरा
वो       हिन्दू   या    मुसलमान    था
वो     कोई           भी      हो         पर
पहिले     वो       इक     इन्सान  था

यह मत   पूँछो    घर किसका  जला
वोह  हिन्दू का     या मुसलमान का
वोह घर कोई  भी   क्योँ   न    हो पर
था    तो        वोह    हिन्दुस्तान  का
हर    वार     लग   रहा    छाती  पर
हर   गोली   छलनी  करती है सीना
हर     आग  का       गोला करता है
इन्सान    का   मुश्किल अब जीना

जिस    घर में     आज  मौत    हुई
उसने   अपना       सब     खोया है
है  इन्सानियत की     भी मौत हुई
ईमान             बैठकर    रोया   है

बेईमान    साज़िशें   सियासत की
इन्सान        का   ख़ून   बहाया  है
फैला   कर       दहशत  गुण्डागर्दी
लूट खसोट   आगजनी बदअमनी
अपना    धंदा          चमकाया   है

इस   दंगे   में    हमने क्या खोया
और   क्या    हमने पाया  है     ?
हिसाब     करोगे    तो      देखोगे
हमने   कुछ      भी    पाया  नहीं
केवल   और   केवल  गँवाया  है
सदियों   में   जो   बन  पाता   है
वो सौहार्द हमने मुफ्त लुटाया है

(समाप्त )

शिक्षा:-
ये दंगा फसाद सामाजिक सौहार्द
बिगाड़ देते हैं और चाहे अनचाहे 
हम साजिशकर्ताओं  की साजिश
का हिस्सा  बन उनके इशारों पर
नाचने लगते हैं  यह ठीक नहीं है 
समाज   में सही   सोंच      होना 
आवश्यक है

Thursday 27 November 2014

कविता : कविता का जन्म

दिल            अगर          माँ          है .....
तो ....         दिमाग       पिता        है .
आत्मा          है ..                ..विचार ...
इन     तीनों      का    संगम  होता है ...
तो… तो    कविता   जन्म    लेती है ...

दिल          मह्सूस     करता         है ......
दिमाग          उस                        पर
गहराई        से            सोंचता       है ...
तब            विचार             आते    हैं 
घनीभूत            होते                     हैं .....
और .  ..कविता ...  जन्म   लेती    है ....

दिल     का        संवेदन शील    होना ....
दिमाग            की        सही      सोंच
उसका      ..साफ़       सुथरा      होना ......
तब     उत्तम     विचार        आतें    हैं ..
और   उत्कृष्ट कविता  जन्म लेती  है ..

कविता     कभी  ..बनाई  नहीं  जाती ......
ज़बर्दस्ती        सुर       ताल         से
जब      सजाई            नही      जाती ..
तो     वोह कविता ..बेहतर  होती ...है
क्योकि          वोह    सीधे     कवि के
दिल            से      जन्म   लेती      है
और जो कविता दिल  से निकलती है
तमाम   दिलोँ     पर असर   करती है





मैं         हँस ....देता    हूँ ...जब    कोई ...
मुझे      कहता     है      कि        उसने
एक            कविता             बनाई   है .
क्योंकि          कोई                 कविता ......
तो     मात्र       किसी        विचार   की
छाया              होती              है    और
उसी      से    जन्म          लेती        है ..

अतः कविता को     निर्झर     बहने दो
उसे    अपने ढंग से               चलने दो ..
बक्शो     उसे  मत     पहिनाओ  ..उसे
मात्राओं              की                बेड़ियाँ ..
मत                  बाँधो                   उसे
पैराग्राफो              के            घेरे     में ...
यूँ              ही  ...बहने    दो       निर्झर .......
स्वतंत्र ...   ....उन्मुक्त ...       ...प्रसन्न
झर .......... झर ..    . झर              झर

क्योंकि                           ओरिजिनल
ओरिजिनल                        होता    है
और      सिन्थेटिक ........ ..सिन्थेटिक ...
असली                   का        मुक़ाबला ........
नकली     कभी  नहीं       कर   सकता .....
फिर             वोह               फैब्रिक  हो
घी हो                   या        कुछ    और ..

अतः      निवेदन  है   कि   कविता को ....
कविता                ही     रहने          दो ...
दिल .         .दिमाग और ...विचार को ..
अपना   .अपना       काम      करने दो ...
ताकि              कविता ...          .जिये ....
और      बन्धनों में      घुट घुट      कर ...
मर                       न                 जाये ....
मर                       न                  जाये ....


(समाप्त )
भाव    व   सन्देश  किसी  भी कविता की
आत्मा होती है   वो सिंथेटिक कविता जो
जबरदस्ती बनाई जाती है  वोह निष्प्राण
बेस्वाद और केवल   सजावट    की वस्तु
होती है वोह दिलो को आंदोलित नहीं कर
सकती  क्योकि कविता लिखना  कला है
कारीगरी या बाजीगरी नहीं

कविता :जागो भक्तों जागो

क्या      करें      हम      ऐसे    संतो    का
जिनके        भक्त         हैं       करोड़ों   में
जिनकी   ख्यति   है    आसमान      तक
जिनके    पास     है       अकूत         धन
जिनके  पास   है   हर प्रकार    की  शक्ति
इस     असीम    शक्ति        ने       उनकी
बुध्धि      की         भ्रष्ट          और      वे
भटक          गये             सन्मार्ग       से
करने     लगे    भ्रष्टाचार    व   व्यभिचार
दुराचार धन  और  बल    का    दुरपयोग
जब   भेद    खुला    भक्त  हैरान  परेशान
जिसे भगवान   माना वो निकला शैतान
महा घिनोना   दुष्ट   बलात्कारी  बेईमान
अब    ऐसे       संतो     का   क्या       करें
कि वे अपने   दुष्कर्मो  का    फल    भोगें
न्याय   व्   धर्म     का      है    ये तकाजा

कि   देश    की       न्याय व्यवस्था     पर
रखकर भरोसा उसे करनें दें  अपना काम
बिना   किसी  रोकटोक  या   रुकावट बने
शायद      ये     ही     मानवता          और
देश    की   सही   सेवा     होगी          और
सच    और  झूठ   की    भी  पहचान होगी
यदि     संत जी      निर्दोष       सिद्ध  होंगे
 तो      वो      साफ़      बच            जायेंगे
और       यदि      दोषी        पाये        गये 
तो      अपने    कर्मों  की   सजा     पायेंगे
अतः आवश्यकता इस बात की है कि हम
अपनी न्यायपालिका     पर भरोसा रक्खें
इस             देश के       संविधान      और
परमपिता     पर    भरोसा              रक्खें

आइये        हम    अपने      देश          के
जागरूक                        नगरिक      बन
इस     महान    देश       की        सेवा करें
मातृभूमि        का       ऋण        अदा करें
मातृभूमि      का         ऋण        अदा करें

(समाप्त)

विशेष नोट :-
ऊपर दी हुयी छवि सांकेतिक है और नेट  से
ली गयी है किसी जीवित या मृत व्यक्ति से
उसका कोई रिश्ता नहीं है

Tuesday 25 November 2014

कविता : जीने का हक़

अक्सर         ऐसा              होता    है …
कि  पौधे    काटने  छाटने      के बाद ….
और … जोश     से      बढ़ते …     हैं
फलते …फूलतें  और     हरियाते  हैं …


और यदि    न     काटा    जाये     तो
उनकी     बाढ़       रुक   जाती       है
बुढा       जाते       हैं           असमय
फल   फूल भी   उन पर नहीं   लगते
लगतें  भी  हैं    तो बहुत   कम  और
वोह        भी        मरे ……       मरे


यह                  साबित      करता है ………
कि   यदि    अपनी   अदम्य  इच्छा
जीने          की       हो …       …तो ……
कोई                ताकत              हमें
जीने   से    रोक   नहीं         सकती
हमारा            जोश   व्      तरक्की
रोक                नहीं             सकती
हमारी     जीवन शक्ति     अजेय  है …………


जिन     बच्चों      में        पढने की
आगे  बढ़ने    की .. इच्छा होती  है ……………
पढतें हैं तमाम  असुविधाओं  और
काट    छाँट       के           बावजूद   ……

प्रतिभाएँ   सदैव जन्म  नहीं लेती
केवल              अमीरों   के     घर
सुख          सुविधा            साधन ………….
हो   सकतें  हैं     पर  साध्य  नहीं ...


कबीर       तुलसी              रैदास ……….
जिये     और       मरे  गरीबी   में …….
पर            कौन       रोक    पाया
उनकी                            उन्नति ……
आगे           बढ़ने      की       चाह
और                                भावना
अतः            दबना   नहीं         है
दबाने                                     से …….
मरना             नहीं  है       केवल
मार                  खाने              से …
कट           के        भी         आगे
बढ़ना                               सीखो
उखड                  के              भी
जमना                             सीखो …….
कुछ           तो सीखो           तुम
झाड़     से                पौधों      से …
कुछ                 तो             बनो     
अपनी            प्रतिभा           से
हिम्मत                               से ………
मुसीबतों  को       आना   है  तो
वे                 जरूर        आयेंगी
और         अपने   साथ  तमाम
तकलीफें       भी          लायेंगी
उनसे     जो     जूझ    सकते हैं
वोहि          बहादुर                हैं
उसी                बहादुर        को     
जीने              का         हक़   है
जीने              का         हक़   है  …….
केवल                   उसे         ही
जीने            का       हक़       है



(समाप्त )
प्रतिभा    विपरीत   परिस्थितियों  में  भी
जीने   की    आगे बढ़ने    की    राह  खोज
लेती    है  और       बहादुर    लोग  अपनी
मंजिल पर अवश्य पहुँचते हैं

हमारे पूर्व प्रधानमंत्री  स्वर्गीय    श्री  लाल
बहादुर शास्त्री  जी  का   बचपन       बहुत
कठनाइयों और चुनौतियों से      भरा  था
फिर भी उनकी उन्नति कोई   रोक  पाया
और अपने अदम्य साहस और  काम   से
देश के यशस्वी   प्रधानमंत्री    बने     और
1962 की चीन से पराजय से   दुखी   और
आहत देश को सन 1965 में  पाकिस्तान
पर  अभूतपूर्व विजय    दिलाकर देश का
मान बढ़ायाऔर देश को गर्वान्वित किया 

कविता : तुम

सब      कहते              हैं ......कि
तुम          कहीं             नहीं   हो .....            
तुम्हारी    मृत्यु     हो    चुकी  है .....
मुझे                                    भी
ऐसा   ही    लगता   है ...क्योंकि
तुम    दिखाई    तो   नहीं पड़ती ......
न   घर में न बाहर न  कहीं और                 ...

पर.……………   मुझे     क्यूँ
लगता         है                    कि
तुम            यहीं               कहीं
हो….         मेरे           पास  हो
मुझे     महसूस           होती हो ...
मेरे तन ..मन .में      समाई हो ..
मेरे रोम .रोम ..में      बसी ..हो
हाँ          दिखती      नहीं      हो ...
क्योँकि   कि .       .           तुम
मेरे      विचारों         में        हो
हवा           की              मानिंद
महसूस    करने            लायक ..
अपनी                          तमाम
खुश्बुओं            के           साथ ...

मैं       तुमसे     अपने        को
जुदा       नहीं                 पाता ..
मैं       तुमसे     अपने       को
जुड़ा                हुवा        पाता
हमेशा                        तुम्हारे
ख्यालों      में      रहता       हूँ ..
तुम्हारी              यादों        में
डूबा                रहता           हूँ ..

तुम्हारी          अच्छी       बुरी ....
यादें        याद       आती      हैं ..
तुम्हारी                         बातें
याद                 आती         हैं
हमने        जो                पल
साथ             जिये            थे ..
ज़िन्दगी      के    रास्तों   पर
साथ   साथ          चले       थे
वो ..             .वो            सब
यादें        याद      आतीं     हैं ...


तुमने        जो     छोड़ी      है
धरोहर ..तीन        लड़कियां
वो        प्यारी            प्यारी ..
आज      भी                    मैं
उन्हें         सहेजता          हूँ ...
प्यार    करता    हूँ       उन्हें ....
और    उन्हें    प्यार   देता हूँ ..

मैं अक्सर      ये    कहता हूँ ...
कि    मैं         miopic       हूँ ...
अपने को प्यार     करता हूँ ....
अपनी       लड़कियों      को
प्यार        करता             हूँ .
उनके          परिवारों     को
प्यार      करता               हूँ
और    यदि      कुछ    बचा ....
तो    फिर   सारे      समाज ...
दुनिया ..                      को
प्यार      करता              हूँ ..


मेरे     लिए   अनमोल    हैं
ये                      लडकियाँ ....
क्योंकि    तुम्हारी       देन ...
है              ये      लडकियाँ ..
इनके                      सहारे
तुम्हारी    यादें ..जीता   हूँ ..
और तुम्हारे   विछोह    के
कडुवे     घूँट      पीता    हूँ ..


सब            कहते हैं     कि
तुम        नहीं               हो ....
कहीं ....नहीं        हो  .. पर ..
मैं सदा अपने    आसपास
तुम्हे   पाता      हूँ .   .और ..
ख्यालों     में    ही     सही ....
अहसासों   में   ही     सही .....
तुम्हारे साथ       जीता हूँ ....
तुम्हारे साथ       जीता हूँ
बस तुम्हारे साथ जीता हूँ ..
क्यों कि    तुम    पास हो
मेरे     हमेशा .     .हमेशा

(समाप्त)
विशेष नोट :-
मेरी दिवंगत  पत्नी  की यादोँ
को समर्पित है   यह कविता