k[11/16, 23:44] akhileshchandra srivastav: 16-11-2016
तांका
1) जीवन डोर
होती जिसके हाँथ
ऊपरवाला
जब चाहे खींचता
खेल होता है ख़त्म
2) प्रीति किससे
बैर होये किससे
पुतले सब
बनाता ऊपरवाला
मिटाता भी तो वही
प्रदीप जी कृपया मुझे भी तांका समूह में ले लीजिये..आपका आभारी रहूँगा..
[11/16, 23:52] akhileshchandra srivastav: आज 16-11-2016" तांका"...
सूखा पेंड
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1) सूखा हूँ पेंड
नहीं है हरियाली
कौव्वे बैठते
और ये बतियाते
सुन्दर था ये पेंड
2) कौन बताये
उन कौव्वों को जन्म
लेते हैं जो भी
एकदिन पहुँचे
इस हालात पर
3) कटना अब
भाग्य लेखा है मेरा
बनूँ ईंधन
जलूँ चूल्हे में कहीं
या बनूँ फर्नीचर
4) ग़म मुझको
क्यों होगा भला मैं
परोपकारी
मरने के बाद भी
करूँ जनकल्याण
(समाप्त)
अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
[11/19, 19:41] akhileshchandra srivastav: नोट बंदी...पर्व
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नोटबंदी का हम तो आज मनाते पर्व
जो सरकार ने किया उसपे हमको गर्व
बदला बदला सा माहौल नज़र आता है
हर आम आदमी खुश नज़र आता है
इसी नोटबंदी पर्व के अवसर पर पेश है "तांका" इसी शीर्षक "नोटबंदी पर्व" से
नोटबंदी पर्व
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1) पुराने नोट
चलन से गायब
बदहवास
कालाधन व्यापारी
भृष्ट चोरबाज़ारी
2) देशद्रोही औ
गद्दार बना मोर्चा
देते चुनौती
उतरे सड़कों पे
करें संसद ठप
3) जनता देगी
इनको भी उत्तर
जो करते ये
बेहूदा हरकतें
नोटबंदी विरोध
4) शांत कश्मीर
शांत नक्सलवाद
शांत दुश्मन
आम जनता खुश
सब नोटबंदी से
5) विरोध करो
जहाँ राष्ट्रहित हो
विरोधी पार्टी
गलत विरोध तो
पड़ेगा भारी बड़ा
6) नोटबंदी ने
बचा लिया देश को
खतरनाक
सामानांतर अर्थ
व्यवस्था के छल से
(समाप्त)
[11/20, 12:23] akhileshchandra srivastav: आज 20-112016
आज के तांका...
ये उपकारी
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1) स्वयं भरोसे
जो भी हैं सदा जीते
जीतते सदा
होती है जयकार
जग पे उपकार
2) ये उपकारी
सदा खुश रहते
परदे पीछे
चुप काम करते
होते नींव के जैसे
3) इनका रोल
समाज में है बड़ा
परोपकारी
और महत्वपूर्ण
बरगद वृक्ष सा
(क्रमशः)
अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
आज 29-11-2016
तांका मालिका
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1) सूरजमुखी
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सूरजमुखी
ताकती सूरज को
जैसे प्रेमिका
पूरब से पश्चिम
घूमती साथ साथ
2) सरसों का खेत
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खेती सरसों
बिछी पीली चादर
ऐसा दीखती
मन को सुखदायी
कायनात बौरायी
3)आम का पेंड़
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फागुन आया
पेंड़ आम बौराया
गुच्छे के गुच्छे
बौरों पे आते आम
सुहानी फ़िज़ा छायी
4) आलू भुना हुवा
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आलू निकालो
वहीँ भून भी डालो
धनिया नोन
बना डालो चटनी
छील छील के खाओ
5) शकरकंद
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शकरकंद
मीठा होता जायका
बहुत स्वाद
सदा रहेगी याद
जम के खाओ आप
(क्रमशः)
अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
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तांका ...गंगाजल
गंगाजल तो
शुद्ध पवित्र करे
जिस पे डालो
स्वयं आजअशुद्ध
अपराध किसका
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तांका...अँधेरा
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दूर अँधेरा
जीवन में उजाला
छा जो जायेगा
वोह शुभ दिन भी
मेरा जल्द आएगा
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तांका महक
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खिला है फूल
महके चारों ओर
तितली आयी
मस्त चक्कर लगा
"महक" ले के उड़ी
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तांका..जीवन
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जीवन हंसी
बनाकर तो देखो
स्वयं हो खुश
सबको भी हँसाओ
दुनिया स्वर्ग बनाओ
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तांका ....भोर
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हो गयी भोर
उग गया सूरज
लाली पूरब
उठो प्रातः सैर को
अविलंब निकलो
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तांका ..कोहरा छाया
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कोहरा छाया
मुश्किल है सफ़र
क्या मैं करूँ जी
घर कैसे पहुँचूँगा
यही तो मेरी चिंता
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------- तांका..... "नींद"
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नींद उड़ा दी
जागूँ सारी रात मैं
तेरी याद में
तड़पता रहता
ग़ाफ़िल.. तू नींद में
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तांका...."समां "
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समां हसीन
मौसम भी रंगीन
दारु के ज़ाम
साथ में नमकीन
औ एक नाज़नीन
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तांका .."पतंग"
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पतंग बना
तूने मुझे चढ़ाया
आसमान में
ऊँचाई पे प्यार की
फिर काट दी डोर...
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तांका... बेदर्दी"
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दिल को तोड़ा
रक़ीब .. रिश्ता जोड़ा
तू तो बेदर्दी
जियूँ कैसे मैं बता
तू हुई जो बेपता
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तांका..." पीर"
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पीर दी मुझे
प्यार की निशानी में
क्या था बिगाड़ा
मैंने तेरा आखिर..
पत्थर के सनम
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तांका..." पीर"
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पीर दी मुझे
प्यार की निशानी में
क्या था बिगाड़ा
मैंने तेरा आखिर..
पत्थर के सनम
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तांका... हौंसला
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हौंसला हो तो
मुझे अपना बना
साथ भी निभा
मेरे क़ाबिल बन
न सिर्फ आज़मा तू
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तांका..मालिका..
पाँच सौ करोड़ की शादी
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धन दिखावा
पाँच सौ करोड़ की
शादी बेटी की
काला धन कमाई
भ्रष्टाचारी वो नेता
एक मज़ाक
सब ईमानदारों
और सज्जनों
से था क्रूर मज़ाक
भोंडा था प्रदर्शन
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तांका मालिका..."जाड़ा"
1) जाड़े की रातें
कोहरा आच्छादित
यात्रा कठिन
होते हैं अपघात
दीखे कठिनाई से
2) जाड़े की धूप
सुखदाई लगती
मुझे सुहाती
तापते धूप हम
लेटे खुले आँगन
3) स्वेटर कोट
मफलर औ टोपी
होते जरूरी
बचाते हम ठण्ड
इस सर्द मौसम
4) मूंगफली हो
या गज़क तिल की
खूब है भातीं
डिनर के बाद ही
लोग है खाते
5) ऊनी कपड़े
लेके आते तिब्बती
खूब बिकते
गरीब भी खरीदें
सस्ते होते कपडे
(क्रमशः)
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तांका-मोर्चा खिलाफ नोट बंदी
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लगाओ ज़ोर
चाहे जितना तुम
नोट बंदी को
नहीं चलने देंगे
विरोध है हमारा
कालाधन औ
भ्रष्टाचार से जँग
जीतोगे नहीं
हम सब सबल
तुम पर है भारी
समेटो यह
अपना तीन पाँच
निकलो जल्द
अब झंडा फहरे
भृष्ट काले धन का
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आज भारत बंद का आवाहन
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(28-11-2016)
भारत बन्द
ख़िलाफ़ नोटबंदी
बोरों में नोट…
काला धन वाले औ
भ्रष्टाचारी करते
नाम जनता
जिक्र है परेशानी
स्वार्थ अपना
काला धन डूबता
भ्रष्टाचार का खात्मा
उनकी नींद
हुई आज हराम
कहाँ विश्राम
चोरी की जो कमाई
होती है हरजाई
ज़ोर लगाओ
सरकार दबाओ
भारत बंद
सरकार झुकेगी
ऐसा उन्हें है भृम
पूरा देश तो
करता समर्थन
नोट बंदी का
और छिडी लड़ाई
जो है देश हित में
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तांका..मालिका--इंतज़ार
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कब तक मैं
रहूँ इंतजारी में
आये न तुम
क्या हुआ वोह वादा
आऊँगा खायी कस्म
वो वादा भूले
तुम मुझको भूले
ओ हरजाई
रो रो के बुरा हाल
बँधी हैं हिचकियाँ
कजरा धुला
गजरा मुरझाया
सूनी हैं आँखे
दूर शून्य निहारूँ
तुम हो परदेश
कौन पोंछेगा
मेरे बहते आँसू
तुम्हारी यादें
छलनी है करती
मेरी पूरी जिंदगी
कैसे निष्ठुर
हृदयहीन तुम
न आते ही हो
न ही ख़बर देते
हत भगिनी हूँ मैं
(क्रमशः)
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नोटबंदी
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मचा है शोर
संसद में हंगामा
नोटबंदी से
लोग है परेशान
लोग तो सराहते
हुए इकट्ठे
कालाबाजारी चोर
औ भ्रष्टाचारी
संयुक्त मोर्चा खोला
ख़िलाफ़ नोट बंदी
उन्हें लगता
वे दबाव बनायें
वापस होगा
फैसला नोटबंदी
सपनो में वे जीते
बहुसंख्यक
जनता समर्थक
नोटबंदी की
नकेल काला धन
और भृष्टाचार पे
मुँह की खाएँ
तमाम विरोधी जो
नोटबंदी तो
अब न हटने की
कोशिश कर देखें
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