Tuesday 20 January 2015

कविता : छोटी छोटी खुशियाँ


जब        छोटी           छोटी       खुशियाँ         जोड़कर
बन        सकती              है            बड़ी              ख़ुशी ...
तो      क्यों    हम    भागें    बड़ी      ख़ुशी     की    ऒर
करके     छोटी    खुशियों        को            नज़रअंदाज .
ये    ताज़े       खिले      फूल         हवा     में      झूमते .
ये     चिड़ियों    के    चहचहाने के    विहंगम       दृश्य
कलकलाती   नदी         ये       मस्त    ठण्डी     बयार..
ये   घोंसलों में बैठे    चिड़िया के  प्यारे    प्यारे   बच्चे
चूँ  चूँ .. की     निरंतर    गूंजती       मधुर         ध्वनि
 नन्हे मुन्ने प्यारे छौनों को     प्यार   करती  कुतिया
या  नन्हे    मुन्नों     को लेकर  घूमती     बिल्ली  माँ
उनकी म्याऊं म्याऊं की ध्यानाकर्षित करती आवाज़
फूलों          पर        डोलते           भँवरे               या
पंख     हिलाती    इधर    उधर      घूमती तितलियाँ
क्या     ये      खुशियां    किसी  से    कम  हैं …… ?
याद करिये जब आप का बच्चा पहिली बार हंसा था
या      पोपले     मुंह से "माँ"     या "पापा"    कहा था
या      जब   आपने       उसे    गोद     में उठाया  था
या जब आप ने किसी निर्दोष को न्याय दिलाया था
या कोई    लाभ बिना  परोपकार का काम किया था
तब क्या आप को आन्तरिक प्रसन्नता नहीं हुई थी
अतः बड़ी  बड़ी  खुशियों के पीछे भागना   बेकार   है …
छोटी छोटी खुशियों को ढूँढिये.उन्हें महसूस कीजिये .
सजाइये   अपना   जीवन ……   …धयान    रखिये
ख़ुशी तो               आपके    मन      में          छुपी है
आपकी                सोंच       में                      छुपी है
ये    वोह         कस्तूरी है        जो     आपके अंदर है …
और आप   उसे समस्त संसार में   धन में  वैभव में
बिल्डिंगों      में            कारों         में               और
समस्त            विलसिताओं    में           ढूंढते     है
 
अतः           ज़रुरत है              कि              अपना
सोंच               बदलिये          नजरिया     बदलिये
छोटी  छोटी खुशियों में        अपनी  खुशियां ढूँढिये
छोटी छोटी खुशियों में       अपने को खुश  कीजिये
बहती ठंडी बयार    खिले  फूलों    उड़ती तितलियों
चहचहाते   पंछियों           हँसते   मुस्कराते बच्चों
कुत्ते बिल्ली के छौनों   में        घास  के बिछौनो  में
अपनी खुशियां ढूँढिये   और उनका आनंद लीजिये
क्योकि    परमपिता ने     स्वयं  उन्हें आपके लिए
आपकी      खुशियों के    लिए     ही           गढ़ा  है
काश हम     समझ     पाते       ठीक से जी     पाते
(समाप्त)
अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव
403 ए ,सनफ्लावर ,रहेजा काम्प्लेक्स
पत्रिपुल के निकट ,कल्याण (पश्चिम)
जिला ठाणे ,महाराष्ट्र  पिन -421301
मोबाइल -09321497415 
 
विशेष नोट :-जब  छोटी छोटी खुशियाँ   बड़ी  खुशियाँ 
बन सकती हैं  तो हम बड़ी खुशियों के पीछे क्यों भागें 
परमपिता परमात्मा ने   बहुत सारी ऐसी चीज़ें बनाई
हैं  जो हमें बहुत खुशियाँ दे सकती हैं और  उसके होने
का  भरोसा भी .........

कविता : साँप और केचुवे

कुछ   लोग   केंचुवे को   भी

साँप                     समझ
मार             डालते       हैं
और                        कुछ
साँप            को          भी
केंचुवा                   समझ
उससे         खेलते   रहते हैं
उनका     मखौल    उड़ाते हैं
बचपन          में       सभी
केंचवे           और      साँप
दीखते        हैं     एक सदृश
निरीह. ……   … लावारिस
एक                       जगह
पड़े   पड़े           निर्जीव से
पर      ज़रा                सी
हरकत           आहट     से
केंचुवे          हिलते       हैं
आगे …                  पीछे
रेंगने   की     कोशिश करते
वहीँ                       साँप
हिलते      हैं       दायें बायें
बिजली     सी          तेज़ी
बला सी    रंगत    के साथ

तुरंत                     साँप
और    केंचुवै   का      भेद
समझ  में    आ   जाता है
अतः       ठीक            से
पहिचानने   की   ज़रुरत है
सांप     और    केंचुवे    में
भेद     करने की  ज़रुरत है ……
कहीं   ऐसा    न          हो
कि        आप         जिसे
केंचुवा    समझ         कर
मनमानी     कर      रहें हैं.……
सता            रहे          हैं …
वोह         साँप      निकलें
आपको     डँस ले      और
आपके                 जीवन
खतरे     में      पड   जाये
वहीँ          जिसे       आप
साँप …         समझ    के
पाल             रहें         हैं
दूध         पिला       रहें हैं
वोह     तथाकथित    साँप
आपके          काम     के
समय                निकले
निरा …………    केंचुवा
और आपकी  सारी आशाएं
धूल    धूसरित      कर दे


अतः    साँप और  केंचुवा
यद्द्यपि    दीखते हैं सदृश
उनकी                सीरत
अलग    अलग    होती है
सूरतें    एक       सरीखी
होने से क्या होता है.... ?

साँप      और       केंचुवे
दोनों   ही है     संसार में
बिखरे              …फैले
पूरे  वातावरण     को घेरे
अतः     आप      अपनी
निगाह     साफ      रखो
पहिचान के बाद   वापरो
धोखा   मत खा    जाना
और    केंचुवे के धोखे में
साँप से मत भिड़  जाना
साँप से मत भिड़  जाना
साँप से मत भिड़  जाना


(समाप्त)
अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव
403 ए , सनफ्लावर ,रहेजा काम्प्लेक्स
पत्रिपुल के पास , कल्याण (पश्चिम)
जिला ठाणे ,महाराष्ट्र -421301
मोबाईल : 09321497415
विशेष नोट : यद्द्यपि केंचुवे और   साँप
दीखते समान  हैं जब वे बच्चे    होते हैं
पर उनके गुण दोष अलग अलग होते हैं
अतः उनके साथ व्यवहार   करते    हुवे
विशेष सावधानी की जरूरत है