Friday 7 August 2015

कविता : मिलना साँप कि केचुल का

आज सुबह…….
टहलते   टहलते ...
अपने घर के गार्डन में ...
अचानक दिखी .......
एक केंचुल साँप की ...
जी   धक्  से रह गया ....
एक ठण्डी  सी सिहरन ...
उतर गयी रीढ़ के ऊपर से नीचे तक ...
हाँथ  पाँव  ठन्डे .....
चीख निकल गयी ....
अरे बाप रे….
केंचुल है तो साँप भी होगा ...
नज़र दौडाई नज़दीक ...नज़दीक ..
दूर .........दूर ......
कहीं तो  कुछ भी तो नहीं ....
पड़ोसी इक्कठे हो गये ....
चीख सुन कर ....
इतना बड़ा साँप ...बाप रे ...
नहीं ...नहीं छोटा ही होगा ....यह तो ....
केंचुल का एक टुकड़ा ही है ....
मैंने अपने मन  को धिक्कारा ...
अरे ...डरे भी किससे ... तो केंचुल से ...
साँप से डरे तो फिर भी  समझ में आता है ..
फिर साँप से भी क्यों डरें ..
वोह किसी का क्या बिगाड़ता है
बेचारा अपने रास्ते आता है
अपने रास्ते जाता है ..
किसी से कुछ नहीं कहता ...
खतरा दिखा तो ही फुफकारता है ...
नहीं माने तो ही काटता है…
उसे भी तो आखिर जीने का  हक है ...
आत्मरक्षा का हक़ है ...


अतः ना तो केचुल से डरना है ...
और ना ही साँप से ....
और साँप बड़ा हों या छोटा ....
पतला हो या मोटा ...
उसके विष से आदमी मरता है
(साँप के )साइज़ से नहीं ..


अतः यह बहस ही बेकार है
कि साँप बड़ा था या छोटा ..
पतला था या मोटा ..
उसे तंग न किया जाये ..
उसे  यदि ढँग से जीने दिया जाये ..
तो वोह किसी का कुछ  बिगाड़ता  नहीं है
किसी का कुछ लेता नहीं है


वोह तो है दोस्त मानव का ....
ख़त्म करता है चूहे और वे तमाम नस्लें ...
जो आदमी की दुश्मन है
अतः आइए आज से हम ..
डरना छोड़ दें केचुल से
साँप से ...

क्योकि साँप हमारा ..
.पारवारिक मित्र है ..
और मित्रता उसका
 उत्तम चरित्र है
आप उसके रास्ते में मत आइये
वोह आपके रास्ते में नहीं आयेगा
आप को देख कर वोह स्वयं ही ..
भाग जायेगा ...



(समाप्त ) वास्तव में साँप हमारा मित्र है और अकारण हमें हानि नहीं पहुंचाता
,सब साँप ज़हरीले भी नहीं होते ,अतः साँपों की रक्षा मानव जाति के हित  में है

Thursday 6 August 2015

कविता :जियो बड़े प्यार से

जियो    बड़े    प्यार से      मरो   बड़े प्यार से
इस      चाशनी   को    तुम    चाहे   कैसे पियो
जिन्दगी है       तुम्हारी      चाहे      जैसे जियो
चाहे     तो           रोते         बिसूरते      रहो
चाहे तो  धनवानों     को कोसते  और घूरते रहो
चाहे तो    अपनी ख़राब  किस्मत का रोना रोवो
या    किसी    बहते     हुवे   सरकारी    नल पे
अपनी           गन्दी          कथरी         धोवो
चाहे        तो    किसी      हसीना से  नैन जोड़ो
या दोस्तों   के साथ  ख़ुशी मनाओ फटाके फोड़ो
गर      नहीं        समझ      आ             रही
कि      जिन्दगी     को   कैसे       है      जीना
हर     ज़हर      को पी   के  कैसे      जीना   ?
कैसे     जिन्दगी    में है तमाम  खुशियाँ पाना ?
तो       भइए     गुरु की      शरण में आ जाना
इधर      आने     में ज़रा      भी     न घबराना
तुम्हारी       मुसीबते         दूर    करेंगे     हम
जीवन    की  तमाम   कमियों से    लड़ेंगे   हम
क्योकि    जिन्दगी  जिन्दादिली   का     नाम है
मुर्दा दिल       क्या     खाक  जिया करते हैं  ?
वे      तो      केवल     गम   ही पिया करतें हैं
अतः     जियो     जियो       भरपूर      जियो
जीवन       की       चाशनी        भरपूर पियो
समझे  न  लल्ला

(समाप्त)

Tuesday 4 August 2015

कविता :दंगे के सन्दर्भ में

यह  मत    पूँछो  कि  कौन मरा
वो   हिन्दू   या    मुसलमान था
वो     कोई     भी    हो        पर
पहिले     वो   इक   इन्सान  था

यह मत   पूँछो घर किसका जला
वोह  हिन्दू का  या मुसलमान का
वोह घर कोई  भी क्योँ  न  हो पर
था    तो   वोह    हिन्दुस्तान  का
हर    वार     लग   रहा छाती  पर
हर   गोली छलनी  करती है सीना
हर     आग  का    गोला करता है
इन्सान  का   मुश्किल अब जीना

जिस    घर में   आज  मौत हुई
उसने   अपना      सब खोया है
है  इन्सानियत की भी मौत हुई
ईमान        बैठकर    रोया   है

बेईमान साज़िशें   सियासत की
इन्सान   का   ख़ून   बहाया  है
फैला   कर    दहशत  गुण्डागर्दी
लूट खसोट आगजनी बदअमनी
अपना    धंदा      चमकाया   है

इस   दंगे   में हमने क्या खोया
और   क्या हमने पाया  है     ?
हिसाब     करोगे    तो   देखोगे
हमने   कुछ   भी    पाया  नहीं
केवल   और   केवल गँवाया  है
सदियों   में जो   बन  पाता   है
वो सौहार्द हमने मुफ्त लुटाया है

(समाप्त)

Monday 3 August 2015

कविता : मेरा बाप.......

मेरा   बाप ….मेरे अंदर   अभी जिंदा है …..
वोह   मुझे   बताता है …   .सिखाता है ….
क्या उचित है और क्या अनुचित ….?
वोह     मुझे     नियंत्रित   करता     है ……
मै उसके सिद्धांतों का पालन करता हूँ …..
उसके    आदर्शो    पर .   .चलता     हूँ
मेरे   बाप का दुश्मन    मेरा दुश्मन है …
और …उसका दोस्त ..      .मेरा दोस्त …
मैं बाप   के बनाये मकान में रहता हूँ ..
उसके    खेतों में …काम     कारता हूँ …
उसके   बताये देवताओं को पूजता हूँ
उसके   सिखाये   त्यौहार   मनाता हूँ
मेरे    बाप ने     मुझे बताया था …कि
” अपन  हिन्दू  हैं ……..”
यह     भी बताया     था    कि …कि ..
हिन्दू    क्या    होता है .       …उसे …
क्या    करना चाहिये …और क्या नहीं ..
उसने     बहुत    कुछ    सिखाया   था …
न       सीखने                             पर …
या   आज्ञा के    उन्लनघन करने पर ..
बेरहमी    से ..    मारा     भी        था ..
आज     मैं     भी  वही सब करता हूँ
अपनी      संतानों    के            साथ …
इसीलिये ..        .तो       कहता   हूँ ..
कि ..    मेरा    बाप     मेरे      अंदर ..
पूरी     तरह    से          जिन्दा    है …
वोह      मेरी    आँखों  से   देखता है …
मेरे     कानों        से         सुनता है …..
मेरे      दिमाग      से       सोंचता है
पर .     .फिर      भी       सब     पर
नियंत्रण          उसी          का     है ….
और      मैं     इस     नियंत्रण   को ………..
सहर्ष       स्वीकार भी      करता हूँ …..
मेरा        बाप          महान       था ….
तहे      दिल से मैं   यह मानता हूँ …
मैं उसके आदर्शो का …शिक्षाओं का ..
पालन              करता                 हूँ ..
और               अपनी   संतानों   को …
उचित . उनुचित का  भेद बताता हूँ …
उन्हें     बताता हूँ    क्या    करना है …
और                 क्या               नहीं ….
यह       बताना मेरा  कर्त्तव्य भी है ..
और .          ..हक़                    भी …..
क्योंकि   मैं भी  अपनी संतानों में ……
सदा ..    .सदा ..   .जिंदा      रहूँगा …
उन्हें              नियंत्रित      करूँगा …
उन्हें                             बताऊंगा .
उचित          उनुचित     का भेद …
उन्हें  अच्छा  इन्सान    बनाऊंगा …
उन्हें तमाम बुराइयों से बचाऊंगा …
तब         मेरी संताने   भी कहेंगी ….
हाँ              हमारा               बाप
हमारे       अंदर      ” अभी  तक”
जिंदा है.           …….जिंदा है ……
और    यह     सिलसिला चलेगा
क़यामत                           तक……
हाँ    हमारे पूर्वज  सच कहते थे …
आत्मा .कभी नहीं मरती केवल …..
चोले    बदल  लिया     करती है …
जैसे       हम    कपड़े बदलते हैं …
और    इसी प्रकार हमारे पूर्वज …..
ऋषि      मुनि ,महान आत्माएँ ..
राम .कृष्ण जीसिस .मोहम्मद ..
सभी    हम     सब में  जिंदा हैं …
और हमें    उपदेश देते रहतें हैं
बुराइयों    से ..मोड़ते    रहते हैं …
काश       ये      समझने    का
..दिलो                  दिमाग …
हमारे          पास       होता ….
काश            ऐसा      होता ……
काश      ऐसा             होता …
तो  इस          धरती     पर
निखालिस     स्वर्ग    होता
निखालिस     स्वर्ग   होता
(समाप्त)
विशेष नोट   : यह     कविता जीन्स सिधांत पर
व् उसके विश्वास      पर   आधारित   है जिसके
अनुसार तमाम गुण दोष  संतानों में    पीदियों
तक  चलती रहतें  है