कविता(१).....आँखें
आँखें.... हमारी "काया " का ..महत्वपूर्ण अंग हैं
आँखें.... हमारी "काया " का ..महत्वपूर्ण अंग हैं
बिना उनके ...यह जहाँ अंधेरा है ..इस खूबसूरती
को निहारने में आँखें हमारा साथ देती हैं ..इसके
अतिरिक्त ये बहुत कुछ करती हैं ...क्या...?
देखिये इस कविता की लाइनों मेंजिसका शीर्षक
है .."आँखे "....
आँखें जब दर्द बयां करती है
गज़ब की खूबसरत दिखती है
गज़ब की खूबसरत दिखती है
ऑंखें जब प्यार बयां करती है
बड़ी प्यारी प्यारी सी लगती है
बड़ी प्यारी प्यारी सी लगती है
और जब वे बयां करती है
कोई प्यारा सा गुस्सा वो
प्यारी कोई रागिनी सी लगती है
प्यारी कोई रागिनी सी लगती है
वोही आँखे जब गुस्से में होती है लाल
किसी तूफ़ान का आगाज़ सी लगती है
किसी तूफ़ान का आगाज़ सी लगती है
आँखे जब भी नम होती है किसी वजह
प्यारी प्यारी शबनम से सजी लगती है
प्यारी प्यारी शबनम से सजी लगती है
गर झाँक सको किसी की गहरी आँखों में
मुकम्मल गहरे समुन्दर की मानिंद लगती है
मुकम्मल गहरे समुन्दर की मानिंद लगती है
तुम्हारे मन में क्या है तुम कहो न कहो
आँखे तुम्हारी सब बेख़ौफ़ बयां करती है
आँखे तुम्हारी सब बेख़ौफ़ बयां करती है
आँखे ही दिखाती है दुनियाँ के मंज़र
सारी कायनात दुल्हन सी नज़र आती है
सारी कायनात दुल्हन सी नज़र आती है
आँखों से ही देख पाते है दोस्त दुश्मन चेहरा
उसकी सारी हकीकत साफ नज़र आती है
कहते हैं सच औ झूँठ में सिर्फ फर्क इतना
कानो सुनी बात पर एतबार नहीं
आँखों देखी बात पर सच मानी जाती है
कानो सुनी बात पर एतबार नहीं
आँखों देखी बात पर सच मानी जाती है
आँखों की कीमत का अंदाज़ा इस बात में है
एक एक आँख उपरवाले की बेशकीमती
सौगात और मेहरबानी मानी जाती है
कविता (२) नज़र ..
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नज़र .........हमारे देखने की क्रिया को नज़र
कहतें हैं ...अलग अलग ढंग से देखने के अलग
अलग प्रभाव होते है सामने वाले पर......इसी
विषय को प्रस्तुत करती है..यह कविता :-
नज़र के बारे में शायर यूँ भी बयाँ करते है
नज़र नम हुई तो दिया दर्द का पैगाम
नज़र झुकी तो हया बन गयी
नज़रो से मारा तो न जिया बेचारा
नज़र ने संभाला तो दिल गया बेचारा
नज़र नज़र की बस बात है
कुछ मेरे और कुछ तेरे साथ है
जिसे मिल गयी कोई नाज़नीं
मुक्कमल मुकद्दर भी उसके ही साथ है
नज़र से गर बच सकते हो तो बचो
नज़र के मारे यूँ ही न मरो
ये नज़र बड़ी कातिल शै है
कि इस नज़र का मारा कोई बचा नहीं
है कोई माई का लाल.... इस जहाँ में
जो नज़र की मार से कभी मरा नहीं
(समाप्त)